
प्रश्नकाल के दौरान गौर ने श्योपुर में कुपोषण से होने वाली मौतों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि मंत्री इस बारे में सरकारी आधार पर जवाब न देते हुए वास्तविक जवाब दें। उन्होंने कहा कि उन्होंने 2015 और 2016 में श्योपुर में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या पूछी थी, जिसके जवाब में विभाग ने ऐसी मौतों से इंकार कर दिया है। गौर ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग ने ऐसी 116 मौतें बताईं हैं, उच्च न्यायालय ने भी सरकार को निर्देश दिए हैं कि कुपोषण से किसी बच्चे की मौत नहीं हो, दोनों विभागों में क्या कोई तालमेल नहीं है।
इस पर मंत्री चिटनिस ने कहा कि विभाग ने कुपोषण को चुनौती के रूप में लेते हुए पूरे प्रदेश में बच्चों के लिए विशेष वजन अभियान चलाया है, जिसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के स्थान पर अधिकारियों से बच्चों का वजन करवाया गया है। श्योपुर के मामले में चिटनिस ने प्रश्नकर्ता विधायक गौर को दोबारा जांच कराने का आश्वासन दिया।
मंत्री के जवाब से असंतुष्ट गौर ने कहा कि अभियान में बच्चे मध्यम वजन के पाए गए हैं, औसत नहीं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़ों में बहुत अंतर है, क्या एक कमेटी से इस बारे में जांच कराई जाएगी। संबंधित सवाल के जवाब में चिटनिस ने कहा कि दोनों विभागों के मानकों में अंतर है, कुपोषण चिकित्सीय तौर पर किसी की मौत का कारण नहीं बनता, उससे होने वाली बीमारियों के चलते मौत होती है और इस अंतर पर समझ विकसित होने की जरूरत है।
उन्होंने अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा से आग्रह किया कि कुपोषण पर भी एक कार्यशाला का आयोजन कराया जाए, जिसमें सभी अपने सुझाव दे सकें। मंत्री के जवाब के बाद गौर ने एक महीने में एक कमेटी से आंकड़ों की जांच शुरु कराने की मांग की, जिस पर चिटनिस ने दोहराया कि श्योपुर के मामले में जांच दोबारा करा ली जाएगी।
क्या है मामला
सरकार निर्धन बच्चों के लिए पोषण आहार का बजट और सामग्री भेजती है लेकिन प्रशासनिक अधिकारी गरीब बच्चों का पोषण आहार बाजार में बेच देते हैं। जिससे बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। कुपोषण के कारण वो बीमार होते हैं और उनकी मौत हो जाती है। मीडिया और विपक्ष इसे कुपोषण से मौत कहता है जबकि सरकार इसे बीमारी से मौत बताती है।