भोपाल। यूं तो कमलनाथ को इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कहा जाता है। वो मप्र की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से लगातार सांसद चुने जा रहे हैं और मप्र में सीएम कैंडिडेट के दावेदार भी हैं परंतु यह एक चौंकाने वाली बात है कि उन्होंने कभी भी कांग्रेस के लिए वोट नहीं मांगे। उन्होंने या तो खुद के लिए वोट मांगे या फिर उन प्रत्याशियों के लिए जिन्हे वो टिकट दिलाकर लाए थे। खास बात यह है कि कानपुर में पैदा हुए कमलनाथ ने यूपी से राजनीति की शुरूआत की लेकिन यूपी चुनाव के दौरान अपने घर जाकर मित्र और रिश्तेदारों से भी कांग्रेस के लिए वोट अपील नहीं की। वो जितने बड़े और स्थापित नेता हैं कांग्रेस संगठन के लिए उनका कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं मिलता।
लक्झरी लाइफ के शौकीन कमलनाथ का जीवन कुछ रहस्यमयी भी है। कहा जाता है कि वो मूलत: कारोबारी हैं और अपने कारोबार को बढ़ाने व सरकारी कार्रवाईयों से बचाने के लिए पार्ट टाइम राजनीति भी करते हैं। भारत में आपातकाल से पहले तक कमलनाथ की कोई खास स्थिति नहीं थी। उनकी कंपनी ईएमसी लिमिटेड जमकर घाटे में चल रही थी। कहा जाता है कि कंपनी को अपने कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे नहीं थे। आपातकाल के बाद कंपनी जमकर मुनाफे में आ गई। आपातकाल में देश में होने वाले ज्यादातर कामों के ठेके कमलनाथ की ही कंपनी को ही मिले। दिसंबर 1975 से जुलाई 1976 के बीच ही इनकी कंपनी को चार करोड़ 73 लाख रुपए के ठेके दिए गए। उस समय यह एक बहुत बड़ी रकम थी। कंपनी ने ठेके तो लिए और काम का भुगतान भी ले लिया पर काम कुछ भी नहीं किया। बाद में ईएमसी कंपनी को ठेके देने के मामले की जांच के लिए आयोग बनाया गया। इस आयोग की अपनी बैठक जनवरी 1978 में हुई थी। इसके बाद कुछ नहीं हुआ। बाद के सालों में आयोग का क्या हुआ यह भी पता नहीं चला।
इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी से कमलनाथ की दोस्ती दून स्कूल में पढ़ाई के दौरान हुई। संजय गांधी के कहने पर ही इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को लोकसभा का टिकट दिया और छिंदवाड़ा के कांग्रेसी नेताओं को दिल्ली बुलाकर व्यक्तिगत रूप से आदेशित किया वो हर हाल में कमलनाथ को जिताकर भेजें। तभी से कमलनाथ मप्र के छिंदवाड़ा में स्थापित हो गए। किसी भी स्थानीय नेता ने कभी कमलनाथ का विरोध नहीं किया। किसी स्थानीय नेता ने लोकसभा के लिए टिकट के सपने तक नहीं देखे। यूं तो कमलनाथ मप्र के 3 दिग्गज नेताओं में गिने जाते हैं परंतु उन्होंने कांग्रेस के लिए कोई अभियान नहीं चलाया। गांधी परिवार पर पकड़ के कारण कुछ कांग्रेसी नेता उनके समर्थक बन गए और कमलनाथ ने उन्हे टिकट दिलाया। उन्हे जिताने के लिए कुछ कोशिशें भी कीं। कुल मिलाकर उन्होंने जो भी किया निजी हितों को ध्यान में रखते हुए किया। यूपी से राजनीति की शुरूआत करने वाले कमलनाथ ने यूपी की तरफ कभी मुड़कर भी नहीं देखा। 27 साल में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया लेकिन इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे ने कभी कोई योगदान नहीं दिया।