होलिका दहन: MP के वनमंत्री की संस्कृति विरोधी अपील

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी/भोपाल। भारतीय हिंदू संस्कृति में होली का धार्मिक के अलावा वैज्ञानिक महत्व भी है। यह कोई खेल नहीं बल्कि ऋतु परिवर्तन के समय की जाने वाली एक ऐसी वैज्ञानिक सामूहिक क्रिया है जो लोगों को संक्रामक रोगों से बचाती है। इसकी अपनी धार्मिक मान्यता भी है। यह वर्ष का एकमात्र दिन होता है जब भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है। यह पूजा से व्यक्ति को उन समस्याओं का भी हल मिल जाता है, ​जिनका वर्षभर कोई निदान ना हो पाया हो लेकिन मप्र के वनमंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार चाहते हैं कि लोग सिर्फ प्रतीक स्वरूप होलिका दहन करें। श्री शेजवार उसी भाजपा से आते हैं, जो भारत में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए किसी भी तरह का बलिदान करने के लिए तैयार रहने का दावा करती है। 

मप्र शासन के वनमंत्री ने अपील जारी की है कि होलिका दहन में कम से कम लकड़ी का उपयोग करते हुए इसे प्रतीक स्वरूप मनाएं। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया है कि वनों के संरक्षण और विकास के लिये जरूरी है कि कहीं भी हरे-भरे पेड़ों को न काटा जाये। इस पर्व को शालीनता और भाईचारे के वातावरण में मनाने में नागरिक सहयोग करें।

क्या है होली का वैज्ञानिक महत्व 
होली के त्योहार से शिशिर ऋतु की समाप्ति होती है तथा वसंत ऋतु का आगमन होता है। प्राकृतिक दृष्टि से शिशिर ऋतु के मौसम की ठंडक का अंत होता है और बसंत ऋतु की सुहानी धूप पूरे जगत को सुकून पहुंचाती है। हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान और अनुभव से मौसम परिवर्तन से होने वाले बुरे प्रभावों को जाना और ऐसे उपाय बताए जिसमें शरीर को रोगों से बचाया जा सके। 

आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार शिशिर ऋतु में शीत के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और बसंत ऋतु में तापमान बढऩे पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं। इनका बच्चों पर प्रकोप अधिक दिखाई देता है। इसके अलावा बसंत के मौसम का मध्यम तापमान तन के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है।

इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से होलिकोत्सव के विधानों में घी के साथ जलाऊ लकड़ी जलाना, अग्नि परिक्रमा, खेलकूद करना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है। शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है। शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन के भाव भी बदलते हैं। मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता है। इसलिए बसंत ऋतु को मोहक, मादक और काम प्रधान ऋतु माना जाता है।

होली नहीं जलाई तो संक्रामक रोग होंगे
पूरे वातावरण में मौजूद संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए जरूरी है कि अधिक से अधिक  संख्या में सूखी हुई जलाऊ लकड़ियों को जलाया जाए। शास्त्रों में कहीं नहीं लिखा कि गीली लकड़ियों को काटकर सुखाया जाए। वनमंत्री होने के नाते नीतिगत था कि वो जंगलों में लावारिस पड़ी हुईं सूखी लकड़ियां उपलब्ध कराएं परंतु वो तो बिना लकड़ी जलाए होलिका दहन की बात कर रहे हैं। यदि सारे प्रदेश ने उनकी अपील मान ली तो चारों ओर संक्रामक रोग फैल जाएंगे। 

होलिका उत्सव का धार्मिक महत्व
पूरे वर्ष में आने वाला यह एकमात्र दिन है जब भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि यदि नरसिंह भगवान की विधिवत पूजा अर्चना की जाए तो व्यक्ति अगले पूरे वर्ष तक टोने, टोटके, षडयंत्र, शत्रुओं के गुप्त हमले और तंत्र मंत्र से मुक्त रहता है। इस दिन श्रृद्धापूर्वक भगवान नरसिंह की करने से व्यक्ति को उन समस्याओं का हल भी प्राप्त हो जाता है जो वर्षभर से उसकी परेशानी का कारण बनी हुईं थीं। 

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