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पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से एससी-एससी के प्रतिनिधित्व की जानकारी मांगी थी। कोर्ट को बताया गया कि वर्तमान में कर्मचारियों के 5 लाख 74 हजार 538 पद भरे हैं। इनमें एक लाख 3 हजार 38 कर्मचारी एससी वर्ग के हैं। इस हिसाब से देखें, तो प्रदेश में इस वर्ग के 18 फीसदी कर्मचारी काम कर रहे हैं, जबकि कानून में 16 फीसदी आरक्षण दिया है। ऐसे ही एसटी वर्ग के 88 हजार 29 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जो 15.32 फीसदी होता है। हालांकि इस वर्ग को कानून में 20 फीसदी आरक्षण दिया है।
सवा लाख पद भरने की मांग
अजाक्स सरकार को कई ज्ञापन सौंप चुका है। हर बार बैकलॉग के सवा लाख पद भरने की मांग की जा रही है। संगठन का तर्क है कि इन पदों के खाली रहने से इस वर्ग को कानून में निर्धारित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। संगठन कहता है कि पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 के सेटअप का पालन नहीं करने से सुपर क्लास वन, क्लास वन और द्वितीय श्रेणी के पदों पर सामान्य वर्ग का कब्जा हो गया है।
भरे पदों से आकलन करें
सपाक्स का कहना है कि अजाक्स कर्मचारियों की कुल संख्या से आकलन क्यों कर रहा है। आकलन तो वर्तमान में भरे पदों से होना चाहिए। जब 5 लाख 74 हजार कर्मचारी काम कर रहे हैं, तो 8 लाख 18 हजार के हिसाब से सुविधा कैसे दी जा सकती है। ऐसी सुविधा मांगना भी गलत है और यदि ये सुविधा दी जा रही है, तो सामान्य वर्ग के खाली एक लाख 40 हजार पद भी भरे जाना चाहिए। वरना, असमानता खड़ी हो जाएगी।
इनका कहना है
सुप्रीम कोर्ट को दिए विश्लेषण से साफ है कि एससी को कानून में निर्धारित मापदंड से अधिक 18 फीसदी प्रतिनिधित्व मिल रहा है। ऐसे में सिर्फ एससी के खाली पद भरना गलत होगा। यदि सरकार इस दिशा में सोच रही है, तो सामान्य वर्ग के पद भी भरे जाना चाहिए।
एके जैन, संस्थापक सदस्य, सपाक्स
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भर्ती में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं हुआ है। एससी-एसटी के पद सेटअप के अनुसार नहीं भरे गए हैं। यदि विश्लेषण में ऐसे आंकड़े हैं, तो सरकार को उनका फिर से परीक्षण करना चाहिए।
विजय शंकर श्रवण, प्रवक्ता, अजाक्स