नई दिल्ली। 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों ने एक बार फिर मोदी को देश का निर्विवाद और सबसे बड़ा नेता साबित कर दिया। 4 राज्यों में बनी सरकार ने यह भी प्रमाणित कर दिया कि मोदी के फैसले गलत नहीं होते लेकिन इन नतीजों में बाद लिए गए 3 फैसलों ने दामन पर छोटे ही सही लेकिन दाग जरूर लगाए हैं। 3 मामलों में भाजपा ने वो सब किया जिसका वो पहले से विरोध करती आ रही है। इस मामलों ने भाजपा में अनुशासन और शुचिता की राजनीति पर सवाल उठाए हैं। हालांकि इससे भीड़ पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन एक वर्ग विशेष में थोड़ी निराशा जरूर आई है।
1- बसपा प्रमुख मायावती को अपशब्द करने वाले दयाशंकर सिंह की घर वापसी
नेता कुछ भी कहें आम जनता शायद ही ये माने कि राजनेताओं का नैतिकता से अब कोई रिश्ता बचा है। न अब वो लाल बहादुर शास्त्री रहे जो नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दें और न लालकृष्ण आडवाणी वही रहे जिन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर इस्तीफा दे दिया था। भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने राज्य की पूर्व सीएम की तुलना जब वेश्या से की तो सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। भाजपा ने खुद को नैतिक साबित करने के लिए तुरंत ही दयाशंकर को छह साल के लिए पार्टी औ पद से हटा दिया। भाजपा के बड़े नेताओं ने तत्काल बयान दिया कि उनकी पार्टी में ऐसी चीजों की कोई जगह नहीं। लेकिन पार्टी की नैतिकता की पहली परत उस समय उघड़ गयी जब उसने दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह को पार्टी की महिला इकाई में पद दे दिया। भाजपा ने फिर स्वाति सिंह को विधान सभा में उतारा और वो चुनाव जीत भी गयीं। चुनाव नतीजे आने के साथ ही भाजपा की नैतिकता की आखिरी परत तब उतर गयी जब दयाशंकर सिंह की भाजपा में घर वापसी हो गयी।
2- तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को बनाया दिल्ली भाजपा का प्रवक्ता
आजकल के तमाम चर्चित नामों की तरह तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को भी हम और आप सिर्फ इसिलए जानते हैं क्योंकि उनका नाम कुछ असभ्य समझे वाले कारनामों में आया। बग्गा पहली बार तब खबरों में आया जब उस पर सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण के साथ मारपीट करने का आरोप लगा। उसके बाद एक समारोह में उसका नाम मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ हुडदंग करने के मामले में उछला। बग्गा का नाम ऐसे ही कुछ और भी मामले हैं लेकिन विधान सभा चुनाव के नतीजे आने से पहले तक भाजपा उससे सीधा रिश्ता मानने से आनाकानी करती थी। चुनाव के नतीजे आते ही पार्टी की दिल्ली इकाई ने उसे प्रवक्ता बना दिया। जाहिर है इससे न केवल बग्गा का बल्कि दिल्ली भाजपा का भी “संस्कार” जगजाहिर हो गया है।
3- गोवा और मणिपुर में सरकार का गठन
यूपी और उत्तराखंड में भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिला। मणिपुर और गोवा में राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा हमेशा दावा करती रही है कि उसके लिए विचारधारा सत्ता से ज्यादा अहम है लेकिन इन राज्यों के नतीजे आने के बाद पार्टी ने मणिपुर और खासकर गोवा में सरकार बनाने के लिए जो “चाल, चरित्र और चेहरा” दिखाया उससे वो कठघरे में खड़ी दिख रही है। गोवा में तो मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने जिन आठ लोगों को अपने साथ मंत्री पद की शपथ दिलायी उनमें से सात भाजपा के नहीं हैं। यानी पर्रिकर सरकार में अभी बहुमत ऐसे मंत्रियों का है जो या तो भाजपा को हराकर सदन में आए हैं या उनके सामने भाजपा मुकाबले में ही नहीं थी|