राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले कुछ सालों में यह देखने में आ रहा है कि जनवरी से मार्च के बीच भारत के भवन निर्माता पूरी दुनिया में जायदाद की प्रदर्शनी करते रहते हैं। इन प्रदर्शनियों के पीछे एक ही मकसद होता है और वह है प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को यहां के रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश के लिए आकर्षित करना। पिछले पांच साल में डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 26.5 प्रतिशत गिरावट आई है, जिससे एनआरआई के लिए जायदाद खरीदना और भी आसान हो गया है। सलाहकार कंपनी स्क्वायर याड्र्स के अनुसार भारत के शीर्ष 8 शहरों में एनआरआई ने 2016 में कुल 9.6 अरब डॉलर का निवेश किया है। कंपनी का मानना है कि 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 11.5 अरब डॉलर हो जाएगा।
भारतीय रियल एस्टेट कारोबार में एनआरआई के बढ़ते निवेश की वजह यह है कि वे यहां से रूबरू होते हैं और यहां निवेश के प्रति उत्साहित भी रहते हैं। रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत होने के कारण भी भारत में एनआरआई के लिए निवेश करना आसान हो जाता है। इसके साथ ही संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देश जिनके नागरिकता कानून कड़े हैं, नागरिकता नहीं देते हैं, इसलिए वहां काम करने वाले भारतीयों को मालूम है कि एक दिन उन्हें अपने देश ही लौटना है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भी नागरिकता प्राप्त करना मुश्किल होता जा रहा है।
'मजबूत आर्थिक वद्धि दर, आवास ऋण पर कम होते ब्याज और रुपये में गिरावट से भी एनआरआई का भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश बढ़ रहा है।' इंटरनेट, पर विनिर्माताओं और परियोजनाओं के बारे में सूचनाएं अब आसानी से उपलब्ध होने के कारण चीजें आसान हो गई हैं। कई विनिर्माताओं और रियल एस्टेट मार्केटिंग कंपनियों ने उन देशों में अपने कार्यालय स्थापित किए हैं, जहां एनआरआई की संख्या अधिक है। हालांकि भारतीय रियल एस्टेट कारोबार बाजार में निवेश करने वाले एनआरआई को इस परिसंपत्ति श्रेणी में निवेश से पहले जुड़े जोखिमों को अवश्य समझना चाहिए।सीधी खरीदी या गृह निर्माण परियोजना के नाम पर धोखे भी कम नहीं हो रहे हैं। अकेले दिल्ली में इस तरह के मामलों की संख्या हजारों में है। विदेश में काम कर रहे लोग एक दिन लौटेंगे। इसे ध्यान में रख क्र इस् बाज़ार पर कड़ी निगाह की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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