नई दिल्ली। मोदी की कैबिनेट ने गुरुवार को अहम फैसला किया। कैबिनेट ने पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह नया आयोग बनाने को मंजूरी दी है। अब इससे संबंधित बिल को संसद में पेश किया जाएगा। नए आयोग का नाम नेशनल कमीशन फॉर सोशियली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास (NSEBC) होगा। इसे कॉन्स्टीट्यूशनल बाॅडी का दर्जा मिलेगा। ओबीसी में नई जाति जोड़ने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होगी। मोदी कैबिनेट के इस फैसले को जाट आरक्षण आंदोलन से जोड़कर देखा जा रहा है।
कैबिनेट ने नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास एक्ट, 1993 को भी रद्द कर दिया है। इसके साथ ही इससे संबंधित बॉडी नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास (NCBC) भी खत्म हो गई है। बता दें कि ओबीसी की की ओर से NCBC को दूसरे आयोग NCSC और NCST की तरह कॉन्स्टीट्यूशनल दर्जा देने की मांग की जा रही थी। अभी तक नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास (NCBC) को कानूनी दर्जा तो था लेकिन संवैधानिक दर्जा नहीं था लेकिन NSEBC को संवैधानिक दर्जा मिलेगा। ऐसा होने के बाद आयोग किसी जाति को पिछड़े वर्ग में जोड़ने और हटाने को लेकर सरकार को प्रपोजल भेजेगा। केंद्र सरकार के मुताबिक, सोशल और एजुकेशनल बेस पर पिछड़ों की नई परिभाषा होगी।
क्या है जाटों के आरक्षण का मामला?
हरियाणा में जाटों की आबादी करीब 30 फीसदी है। ये ओबीसी कैटेगरी में रिजर्वेशन चाहती है। हरियाणा में कांग्रेस की पिछली भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने 2012 में स्पेशल बैकवर्ड क्लास के तहत जाट, जट सिख, रोड, बिश्नोई और त्यागी कम्युनिटी को रिजर्वेशन दिया। यूपीए सरकार ने भी 2014 में हरियाणा समेत 9 राज्यों में जाटाें को ओबीसी में लाने का एलान किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को पिछ़ड़ा मानने से इनकार कर यूपीए सरकार का ऑर्डर कैंसल कर दिया। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के भी एक ऑर्डर के बाद 19 सितंबर 2015 को खट्टर सरकार को भी जाटों सहित पांच जातियों को आरक्षण देने के नोटिफिकेशन को वापस लेना पड़ा। यह नोटिफिकेशन हुड्डा सरकार के वक्त जारी हुआ था। इसी के बाद से जाट कम्युनिटी खट्टर सरकार पर नया रास्ता तलाशने का दबाव बना रही है।
क्या है पिछड़ा वर्ग आरक्षण नीति?
कॉन्स्टीट्यूशन के पैराग्राफ 15 और 16 में सोशियली और एजुकेशनली पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने को कहा गया है। इसमें शर्त है कि यह साबित किया जाए कि वो दूसरों के मुकाबले इन दोनों पैमानों पर पिछड़े हैं क्योंकि बीते वक्त में उनके साथ अन्याय हुआ है, यह मानते हुए उसकी भरपाई के तौर पर, आरक्षण दिया जा सकता है।
अभी कैसे दिया जाता है आरक्षण?
राज्य का पिछड़ा वर्ग आयोग राज्य में रहने वाले अलग-अलग वर्गों की सामाजिक स्थिति का ब्यौरा रखता है। वह इसी आधार पर अपनी सिफारिशें देता है। अगर मामला पूरे देश का है तो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अपनी सिफारिशें देता है। देश में कुछ जातियों को किसी राज्य में आरक्षण मिला है तो किसी दूसरे राज्य में नहीं मिला है। मंडल कमीशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कर दिया था कि अलग-अलग राज्याें में हालात अलग-अलग हो सकते हैं।
SC ने कहा था आरक्षण के लिए सिर्फ जाति आधार नहीं हो सकती
सुप्रीम कोर्ट ने 1963 में बालाजी बनाम मैसूर राज्य के मामले में माना कि कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने इस केस में सरकार के उस ऑर्डर को खारिज कर दिया था, जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी के लिए 68% सीटें रिजर्व की थीं। कोर्ट ने कहा था कि आमतौर पर 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता, क्योंकि मेरिट और सोशल जस्टिस दोनों को ध्यान में रखना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा था कि आरक्षण के लिए जाति अपने आप में कोई आधार नहीं बन सकती। उसमें दिखाना होगा कि पूरी जाति ही शैक्षणिक और सामाजिक रूप से दूसरी जातियों से पिछड़ी है।