‘ट्रैप्ड’ देखते समय पर्दे पर एक टक और अपलक देखने की जरूरत पड़ेगी। आज के चलन के मुताबिक अगर मोबाइल पर पल भर के लिए भी निगाह अटकी तो मुमकिन है कि तेजी से आगे बढ़ रही फिल्म का कोई सीन निकल जाए और फिर यह समझ में न आए कि अभी जो हो रहा है, वह कैसे हो रहा है? राजकुमार राव ने शौर्य की उलझन, मुश्किल, बेचारगी और हिम्मत को पूरी शिद्दत से पर्दे पर जीवंत किया है। हम शौर्य के व्यक्तित्व और सोच में आ रहे रूपातंरण से परिचित होते हैं। शौर्य से हमें हमदर्दी होती है और उसकी विवशता पर हंसी भी आती है। चूहे के साथ चल रहा शौर्य का एकालाप मर्मस्पर्शी है। दोनों ट्रैप्ड हैं।
हिंदी फिल्मों की एकरूपता और मेनस्ट्रीम मसाला फिल्मों के मनोरंजन से उकता चुके दर्शकों के लिए विक्रमादित्य मोटवाणी की ‘ट्रैप्ड’ राहत है। हिंदी फिल्मों की लीक से हट कर बनी इस फिल्म में राजकुमार राव जैसे उम्दा अभिनेता हैं, जो विक्रमादित्य मोटवाणी की कल्पना की उड़ान को पंख देते हैं। यह शौर्य की कहानी है,जो परिस्थितिवश मुंबई की ऊंची इमारत के एक फ्लैट में फंस जाता है। लगभग 100 मिनट की इस फिल्म में 90 मिनट राजकुमार राव पर्दे पर अकेले हैं और उतने ही मिनट फ्लैट से निकलने की उनकी जद्दोजहद है।
फिल्म की शुरूआत में हमें दब्बू मिजाज का चशमीस शौर्य मिलता है,जो ढंग से अपने प्यार का इजहार भी नहीं कर पाता। झेंपू, चूहे तक से डरने वाला, शाकाहारी ,यह युवक केवल नाम का शौर्य है। मुश्किल में फंसने पर उसकी जिजीविषा उसे तीक्ष्ण, होशियार, तत्पर और मांसाहारी बनाती है। ‘ट्रैप्ड’ मनुष्य के ‘सरवाइवल इंस्टिंक्ट’ की शानदार कहानी है। 21 वीं सदी के दूसरे दशक में तमाम सुविधाओं और साधनों के बीच एक फ्लैट में बंद व्यक्ति किस कदर लाचार और हतप्रभ हो सकता है? ऐसी मुश्किल में फंसे बगैर इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।
फिल्म में ऐसे अनेक प्रसंग हैं,जहां सिर्फ हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज से राजकुमार राव सब कुछ अभिव्यक्त करते हैं। विक्रमादित्य मोटवाणी अपनी पीढ़ी के अनोखे फिल्मकार हैं। उनके मुख्य किरदार हमेशा परिस्थितियों में फंसे होते हैं, लेकिन वे निराश या हताश नहीं होते। वे वहां से निकलने और सरवाइव करने की कोशिश में रहते हें। उनकी यह कोशिश फिल्म को अलग ढंग से रोचक और मनोरंजक बनाती है। उन्होंने ‘ट्रैप्ड’ में मुंबई महानगर में व्यक्ति के संभावित कैद की कल्पना की है। उन्हें राजकुमार राव का भरपूर साथ मिला है।
शौर्य के किरदार के लिए आवश्यक स्फूर्ति, चपलता, गंभीरता, लरज और गरज राजकुमार ले आते हैं। किरदार के क्रमिक शारीरिक और मानसिक रूपांतरण को उन्होंने खूबसूरती से जाहिर किया है। यह फिल्म अभिनय के छात्रों को दिखाई और पढ़ाई जा सकती है। फिल्म में कैमरे और साउंड का जबरदस्त उपयोग हुआ है।