UTTARAKHAND: कांग्रेस के खाते में जमा हुई थी मुआवजा घोटाले की घूस ?

Bhopal Samachar
रुद्रपुर/ऊधमसिंहनगर। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक बैंक खाते ने बड़े-बड़ों की नींद उड़ा दी है। दो माह के भीतर इस खाते में करोड़ों रुपये कहां से और किस एवज में जमा किए गए, इसका किसी के पास जबाव नहीं है। एक को छोड़ सभी दानवीर ऊधमसिहनगर जिले के ही हैं।इनमें 31 लाख रुपये तक पार्टी फंड में जमा कराने वाले दानवीर हैं। 5, 10 और 15 लाख जमा कराने वाले भी दर्जनों हैं। इन्हीं लोगों के दम पर खाते का बैलेंस करोड़ों में पहुंचा। दानवीरों में अधिकांश वे किसान हैं, जिनकी भूमि एनएच-74 चौड़ीकरण की जद में आई। 

सूत्रों की मानें तो मुआवजे में कटौती कर एक बड़ा हिस्सा इस खाते में जमा कराया गया। अब जबकि यह खाता जांच के दायरे में है तो बड़े-बड़ों की सांसें उखड़ रही हैं। सवाल यह है कि ऊधमसिहनगर के लोगों का कांग्रेस पर इतना प्यार आखिर क्यों उमड़ा। चुनाव में ऊधमसिहनगर खासा चर्चा में रहा। वजह, यहां की किच्छा विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री हरीश रावत का चुनाव लड़ना। आचार संहिता से पूर्व उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से खुला एक बचत खाता संख्या 36404121330 अब खासा चर्चा में है।

भारतीय स्टेट बैंक, देहरादून की नेशविला रोड शाखा में खुले इस खाते का संचालन मुख्यमंत्री के वरिष्ठ निजी सचिव कमल सिह रावत द्वारा किया जा रहा था। दो माह के भीतर इस खाते में 18 करोड़ रुपये तक जमा हुए। यह पैसा पार्टी फंड को दानवीरों ने दिया। सर्वाधिक संख्या पांच लाख जमा कराने वालों की है।

खास बात यह है कि चुनाव के दौरान इस खाते से निकासी भी खूब हुई। यानी चुनाव का बड़ा खर्च भी इस खाते से किया गया। अब सवाल यह है कि कांग्रेस को इतनी बड़ी संख्या में दान क्यों दिया गया। इसके पीछे क्या मकसद था। किसी पर कोई दबाव तो नहीं था।

यह सवाल ऐसे हैं जो जांच का विषय हैं। वैसे अब तक जो सामने आया है, उसके मुताबिक खाते में पैसा जमा करने वाले कई बिल्डर, उद्योगपति के साथ ही वे किसान भी हैं, जिनकी भूमि एनएच चौड़ीकरण की जद में आई है। हाईकोर्ट में मुआवजा घोटाले को लेकर पीआईएल दाखिल करने वाले राम नारायण ने इस खाते के जांच की मांग भी की है।

करोड़ों के इस घोटाले की सीबीआई जांच की संस्तुति भी की जा सकती है। कुमाऊं के कमिश्नर डी सेंथिल पांडियन खुद स्वतंत्र एजेंसी से जांच की बात मुख्य सचिव के सामने रख चुके हैं, इसलिए यह माना जा रहा है कि शासन इस मामले में कड़ा निर्णय ले सकता है।

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