रत्ना भूषण/नई दिल्ली। एक कैंडी अगर करोड़ों का बिजनस करते हुए बड़ी विदेशी कंपनियों को मुनाफे में पिछाड़ दे तो आश्चर्य होता है लेकिन हर उम्र के लोगों की पसंद बन चुकी 'पल्स' चौंकाने की शुरुआत पहले ही कर चुकी है। 2015 में रजनीगंधा और कैच पानी बनाने वाली कंपनी डीएस (धर्मपाल और सत्यपाल) ग्रुप ने कच्चे आम के स्वाद वाली टॉफी पल्स को लॉन्च किया था। पल्स कैंडी ने लॉन्चिंग के 8 महीने के अंदर 100 करोड़ रुपये का आंकड़ा छू लिया था।
पिछले महीने 1 रुपए कीमत वाली पल्स ने 300 करोड़ की सेल करते हुए ओरियो जैसी मल्टी नैशनल कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। 2011 में भारत लॉन्च हुए ओरियो की सेल्स 283 करोड़ रुपए रही। पल्स का अब तक का सफर सफलता की कहानी रहा है। कोका-कोला के खूब प्रचारित किए गए प्रॉडक्ट कोक जीरो का सेल्स फीगर 120 करोड़ रुपए रहा। भारत में प्रतिस्पर्धा को देखते हुए पल्स का प्रदर्शन काबिलेतारीफ है।
भारत में कैंडी इंडस्ट्री 6,600 करोड़ रुपए की है जो 12 से 14 प्रतिशत की रफ्तार से हर साल बढ़ रही है। कुछ देसी ब्रैंड्स के अलावा कैंडी मार्केट में पल्स की टक्कर पार्ले की मैंगो बाइट और इटली की कंपनी ऐल्पेन्लिबे से रही है। पार्ले और ऐल्पेन्लिबे कैंडी मार्केट में एक दशक से भी ज्यादा समय पूरा कर चुके हैं। पल्स ने 2 सालों में ही पार्ले और ऐल्पेन्लिबे के बाद तीसरा स्थान पा लिया है।
डीएस ग्रुप पल्स को सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका तक पहुंचाने की कोशिश में है। इसके साथ ही कंपनी इसका फॉर्म्युला भी पेटेंट कराने पर विचार कर रही है। खास बात यह है कि इस टॉफी के प्रचार पर भी कोई खास खर्च नहीं किया गया। बिना किसी टीवी ऐड के पल्स ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली और इसका सबसे बड़ा कारण था 'वर्ड ऑफ माउथ' पब्लिसिटी। लोगों ने इसे ट्राई किया और दोस्तों को ट्राई करने को बोला और इस तरह पल्स बढ़ती गई।