शिवराज की कन्यादान योजना पर सवाल: विवाह योग्य 2 बेटियों के साथ मां ने की आत्महत्या

Bhopal Samachar
भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कन्यादान योजना पर आज उस समय सवाल खड़ा हो गया जब रायसेन की एक महिला ने अपनी विवाह योग्य 2 बेटियों के साथ रेल के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड इसलिए किया क्योंकि महिला के पास अपनी बेटियों की शादी करने के लिए पैसा नहीं था। चौंकाने वाली बात यह है कि उसे मुख्यमंत्री की कन्यादान योजना की जानकारी भी नहीं था। सवाल यह है कि कन्यादान योजना के प्रचार प्रसार पर जो करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए गए, क्या वो केवल शहरी इलाकों तक ही सीमित थे कि फर्जी और जनता के बीच ना पहुंचने वाले माध्यमों को​ दिए गए थे। याद दिला दें कि कन्यादान योजना के तहत ना केवल निर्धन कन्याओं का विवाह कराया जाता है बल्कि सरकार की ओर से कन्या को 25 हजार रुपए के उपहार भी दिए जाते हैं। 

शाहपुरा टीआई जीतेंद्र पटेल के मुताबिक मूलत: रायसेन निवास महाराज सिमह मीणा बावड़िया कला में झुग्गी बनाकर रहते हैं। आज उनकी पत्नी सरजू (55) बेटी सुषमा (18) और छोटी बेटी सपना (15) ने  ट्रेन के सामने कूदकर खुदकुशी कर ली। महिला के पति महाराज सिंह ने पुलिस को बताया कि उसके परिवार में चार बेटी और एक बेटा है। दो बेटियों की शादी हो चुकी है, जबकि दो बेटियों की शादी को लेकर परिवार परेशान था। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार के पास बेटियों की शादी के पैसे नहीं थे। जिसको लेकर परिवार में तनाव का माहौल बना हुआ था।

प्रत्यक्षदर्शी की तलाश...
टीआई पटेल ने बताया कि अब तक हुई पड़ताल में यह बात तो साफ हो गई है कि मां बेटियों ने ट्रेन के सामने कूदकर जान दी है। अब पुलिस को प्रत्यक्षदर्शियों की तलाश है। चूंकि मामला अल सुबह के समय का है, इसलिए कोई भी व्यक्ति मौके पर मौजूद नहीं था। महिला का पति और बेटा भी घर में सो रहे थे। कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला है।

क्या कन्यादान प्रचार प्रसार घोटाला हुआ है
कन्यादान योजना के प्रचार प्रसार पर पिछले 12 सालों में हजारों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। रिकॉड बताता है कि कई तरह के प्रचार प्रसार माध्यमों को इस योजना के विज्ञापन के लिए करोड़ों का भुगतान किया गया। अब सवाल यह है कि क्या सरकार ने बिना पड़ताल किए ऐसी प्रचार माध्यमों को विज्ञापन दिए जो जनता के बीच जाते ही नहीं थे। कहीं अपनों को उपकृत करने के लिए योजनाओं का प्रचार प्रसार ऐसे माध्यमों में तो नहीं हो रहा जो पूरी तरह से या आशिंक तौर पर फर्जी हैं। बताते चलें कि मप्र में हजारों ऐसे अखबार हैं जिनकी एक भी कॉपी किसी भी बुक स्टॉल पर नहीं होती। दर्जनों ऐसे चैनल हैं जो सेटेलाइट से प्रसारित ही नहीं होते। सैंकड़ों ऐसी संस्थाएं हैं जो बंद कमरे में प्रचार की सीडी तैयार कर लेतीं हैं। आरोप है कि जनसंपर्क विभाग के अधिकारी ऐसे प्रचार माध्यमों को कमीशन के बदले मोटी रकम अदा करते हैं। यही कारण है कि सरकार की उपयोगी योजनाएं जनता तक पहुंच ही नहीं पातीं। 

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