गर्मियों के दिनों में डीहाइड्रेशन से बचाना है तो गन्ने का रस सबसे बेहतर विकल्प है। इसके साथ ही यह जॉन्डिस जैसी घातक बीमारी में इसका चमत्कारी असर देखने को मिलता है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह बेहतरीन पेय है। इसका रस एनीमिया, कैंसर आदि तमाम बीमारियों से बचाता है। इतना चमत्कारी होने के बावजूद गन्ने के सर के खिलाफ बाजार में भ्रम फैलाया जा रहा है। दरअसल, यह भ्रम कोक और पेप्सी जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ठंडे पेय बनाने वाली कंपनियां फैलातीं हैं। इनकी पीआर टीम हर साल गर्मी के पहले टीवी और अखबारों को बड़े बड़े विज्ञापन देती हैं, फिर एक रिपोर्ट भेजकर आग्रह करती है कि वो गन्ने के रस से होने वाले नुक्सान के बारे में लोगों को जागरुक करें। विज्ञापन के दवाब में अखबार गन्ने के रस की इस कदर बुराई करते हैं मानो गन्ना जहरीला हो गया हो। यह इंसान जान का दुश्मन हो।
जानिए कब पिएं गन्ने का रस
गन्ने का जूस उसी स्थिति में लाभकर होता है जब आप उसे ताजा पीयें। यदि आपको कोई फ्रीज किया हुआ जूस दे तो उसे न पीयें। गन्ने का जूस पीते वक्त इस बात का ख्याल रखें कि आपके रस में कोई अन्य चीज की मिलावट न हो। इसके साथ ही विशेषज्ञों के मुताबिक एक दिन में दो गिलास से ज्यादा गन्ने का रस न पीयें। दरअसल स्वस्थ आदमी की महज दो गिलास गन्ने के रस की ही जरूरत होती है। यदि संभव है तो गन्ने का जूस बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले गन्नों पर अवश्य नजर दौड़ाएं। कहीं आपको सड़े गन्ने का रस तो नहीं दिया जा रहा। यह पेट में बीमारी पैदा कर सकता है।
कुछ इस तरह की होती है कंपनियों के खरीदे हुए पत्रकारों की खबर
आपको लगता है कि गन्ने का रस आपके गले को तर कर देगा और शरीर को फायदा पहुंचाएगा, तो यह आपकी गलतफहमी है। हकीकत यह है कि गन्ने का रस और बर्फ दोनों की तासीर अलग है। यदि आप जरा-सी सावधानी बरतेंगे तो बीमारी से बच सकते हैं। गन्ने का रस पीने से पहले एक बार देखिए कि वह बनता कैसे है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गन्ने की सफाई नहीं की जाती। गन्ने पर काली फफूंद लगी होती है। हो सकता है कि जिस गन्ने का जूस आप पी रहे हों, उस पर खेतों की मिट्टी न हटाई गई हो। या नींबू धब्बेदार हो। उसके बीज भी नहीं निकाले जाते। पुदीना धोया नहीं जाता। रस निकलकर जिस पतरे में आता है उसे हाथ से तपेली की तरफ बढ़ाया जाता है। क्या आपने कभी यह चेक किया कि जिन हाथों से ऐसा किया जा रहा है वह साफ हैं या नहीं। उन्हीं हाथों से गन्ना पकड़ा जाता है, जनरेटर चलाया जाता है मशीन को घुमाया जाता है। हाथ कभी धोए नहीं जाते। बस यहीं से बीमारी के सारे लक्षण शुरू हो जाते हैं।
ये बीमारियां होती हैं फफूंद लगे गन्ने का रस पीने से
गन्ने पर जो फफूंद होती है उससे हेपेटाइटिस ए, डायरिया और पेट की बीमारियां होती हैं। इसी प्रकार गन्ने की मिट्टी से भी पेट संबंधी बीमारियां होती हैं। बॉटनी एक्सपर्ट डॉ. अवनीश पाण्डेय के अनुसार गन्ने में अगर लालिमा है तो इसके रस मत पीजिए। इस फफूंद को गन्ने की सड़ांध या रेड रॉट डिजीज कहा जाता है। यह एक तरह का फंगस है, जो गन्ने के रस को लाल कर देता है। इससे जूस की मिठास भी कम हो जाती है। ऐसा गन्ना सस्ता मिलता है और सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। बॉम्बे हॉस्पिटल के जनरल फिजिशियन डॉ. मनीष जैन कहते हैं कि अगर गन्ने का रस बनाते समय साफ सफाई का ध्यान न रखा जाए तो ज्वाइंडिस, हेपेटाइटिस, टायफायड, डायरिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
तो अब क्या करें
बस थोड़ा सावधान रहिए। शीतल पेय की कुछ बोलतों में भी फफूंद या छिपकली निकल आती है। तो क्या सारी की सारी कंपनी को ही गलत ठहरा दिया जाएगा। गन्ने का रस ज्यादा से ज्यादा पेट को नुक्सानदायक होता है। पीड़ित व्यक्ति की दिनचर्या में थोड़ा सा परिवर्तन आ जाता है। 24 घंटे बाद सबकुछ सामान्य हो जाता है। यदि आप डीहाइड्रेशन, पीलिया, एनीमिया और कैंसर जैसी बीमारियों से बचना चाहते हैं तो इतनी सावधानी तो रखना ही होगी। इसके लिए आपको रस वाले की दुकान तक जाने की जरूरत नहीं। आप अपने जूसर में भी गन्ने का रस निकाल सकते हैं।