आनन्द दास। दलितों के धर्मांतरण को लेकर अंबेडकर और गाँधीजी के बीच तो तीखा मतभेद था उसके मूल में थी इन दोनों महापुरूषों की अपनी-अपनी प्राथमिक प्रतिबद्धताओं की पारस्परिक टकराहट। गाँधीजी हिंदू धर्म में रहकर जातिगत भेदभाव मिटाना चाहते थे पर वर्ण-व्यवस्था खत्म नहीं करना चाहते थे। वे जाति-व्यवस्था को पारंपरिक व्यवस्था और कार्य पद्धति से जोड़ कर देखते थे। गाँधीजी चाहे स्वयं को संपूर्ण भारत का प्रतिनिधि कहते थे किंतु अंबेडकर उन्हें दलितों का प्रतिनिधि मानने के लिए तैयार नहीं थे।
वे उन्हें शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसे बड़ा हिंदू हित रक्षक बताते थे। और आगे चलकर दलितों के पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के मुद्दे पर अंबेडकर ही सही साबित हुए क्योंकि गाँधीजी अछूतों को किसी भी कीमत पर भी हिंदू धर्म में पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के रूप में किसी प्रकार का विभाजन नहीं देख सकते थे। दलितों के लिए अंग्रेज सरकार द्वारा प्रस्तावित पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के खिलाफ ब्रिटिश प्रधानमंत्री को आमरन अनशन के अपनी निर्णयगत अडिगता की सूचना देते हुए गाँधीजी कठोर चेतावनी देते हैं कि 'आप बाहर के आदमी हैं अत: हिंदुओं में फूट डालने वाले ऐसे किसी भी मसले में कोई हस्तक्षेप न करें। दलित वर्गों के लिए यदि किसी पृथक निर्वाचन मंडल का गठन किया जाना है तो वह मुझे ज़हर का ऐसा इंजेक्शन दिख पड़ता है, जो हिंदू धर्म को तो नष्ट करेगा ही, साथ ही उससे दलित वर्ग का भी रंचमात्र हित नहीं होगा। आप मुझे यह कहने की अनुमति देंगे कि भले ही आप कितनी भी सहानुभूति रखते हों, पर आप संबद्ध पक्षों के लिए ऐसे अति महत्वपूर्ण तथा धार्मिक महत्व के मामले पर कोई ठीक निर्णय नहीं ले सकते।’
स्पष्ट है कि गाँधीजी के लिए दलितों का हित दूसरे स्थान पर था, उनकी पहली प्राथमिकता थी हिंदू धर्म को तथाकथित सर्वनाश से बचाना जबकि अंबेडकर अपना पहला दायित्व दलितों का कल्याण और उत्थान चाहते थे। उन्हें हिंदू धर्म की वर्ण-व्यवस्था को खत्म करना था जोकि सामाजिक असमानता का मूल कारण है। अंबेडकर हिंदू जाति-व्यवस्था द्वारा दलितों पर लादे अलगाव को और तदजन्य हीन भावना से दलितों को छुटकारा दिलवाने का एक मात्र रास्ता धर्म परिवर्तन को पाते थे बशर्तें कि अपनाया जाने वाला नया धर्म दलितों के साथ हिंदू धर्म में जारी तमाम प्रकार के बहिष्कार, बेरूखी और पूर्वाग्रहों से मुक्त हो।
लेखक आनन्द दास एजेसी बोस कॉलेज, कोलकाता में अतिथि प्रवक्ता हैं।