राकेश दुबे@प्रतिदिन। और अब दिल्ली के उप राज्यपाल ने आम आदमी पार्टी को जबरिया कब्जाए सरकारी बंगले को छोड़ने का हुकुम दिया है। इसके पहले निजी मुकदमे का खर्च सरकारी खजाने से भुगतान कराने की कोशिशों का पर्दाफाश होने पर आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की एक बार फिर जमकर जगहंसाई हो चुकी है। सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और ईमानदारी की दुहाई देकर दिल्ली में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई ‘आप’ की छवि इन घटनाओं से और भी कमजोर हुई है। इन मामलों में कई तरह की तकनीकी दलीलें सामने लेकर पार्टी आई, लेकिन ये दलीलें नकली बचाव ही सिद्ध हो रही हैं।?
भाजपा ने केजरीवाल पर सार्वजनिक धन की ‘लूट और डकैती’ करने का आरोप लगाते हुए सवाल उठाया कि निजी मामले में भुगतान करदाताओं के धन से कैसे किया जा सकता है? उधर, आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया कि केजरीवाल ने जो भी आरोप लगाए थे, वह सार्वजनिक हित में और सार्वजनिक पद पर रहते हुए लगाए थे। इसलिए इसमें कुछ भी निजी नहीं है। इस बीच जेठमलानी ने कहा कि वे यह मुकदमा मुफ्त में लड़ने को तैयार हैं, क्योंकि केजरीवाल उनके गरीब मुवक्किल हैं और वे ऐसे लोगों के लिए मुफ्त सेवाएं पहले भी देते रहे हैं। लेकिन अगर जेठमलानी को मुफ्त सेवा देनी थी तो इतना लंबा-चौड़ा बिल क्यों भेजा था?
पिछले महीने नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में 29 करोड़ रुपए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तयमानकों के विरुद्ध विज्ञापन पर खर्च करने की बात कही थी। इस बारे में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को वसूली करने का आदेश भी जारी कर चुके हैं।
अब बंगले पर जबरिया कब्जे का मामला है। एक के बाद एक खुलासों के चलते आप की साख को और चोट पहुंची है। आम आदमी पार्टी हाइकमान संस्कृति को खत्म करने और सत्ता के दुरुपयोग को बंद करने के वादे पर वजूद में आई थी। विडंबना यह है कि खुद अपनी ही कसौटियों पर आज वह कठघरे में खड़ी दिखती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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