राकेश दुबे@प्रतिदिन। आठ राज्यों की दस विधान सभा सीटों पर गत 9 अप्रैल को हुए उपचुनावों में भाजपा का विजय अभियान जरुर एक कदम बढ़ा, पर अभी कांग्रेस मुक्त भारत का लक्ष्य दूर है। मतदाताओं के दिलों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और भाजपा का आकर्षण अभी बरकरार है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश की भोरंज, असम की धेमाजी, दिल्ली की राजौरी गार्डन, राजस्थान की धौलपुर और मध्य प्रदेश की बांधवगढ़ विधान सभा सीटों पर शानदार जीत हासिल की है लेकिन कांग्रेस ने कर्नाटक की दोनों-ननजनगुड और गुंदलुपेट तथा मध्य प्रदेश की अटेर विधान सभा सीटों पर जीत दर्ज करके दिखा दिया है कि आने वाले दिनों में वह भाजपा को गंभीर चुनौती देने में सक्षम है. इसी तरह दिल्ली के राजौरी गार्डन सीट पर भले वह हार गई है, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में जो उछाल आया है, वह उसके लिए संजीवनी का काम करेगा।
मुख्यधारा की राजनीति में कांग्रेस की मजबूत उपस्थिति लोकतंत्र के लिए बेहतर होगी. जब भी भारतीय राजनीति में एक दल का प्रभुत्व स्थापित हुआ है, तो इसने किसी न किसी रूप में अधिनायकवादी या एकतंत्रीय शासन व्यवस्था को ही रेखांकित किया है। अतीत में इंदिरा गांधी और वर्तमान में नरेन्द्र मोदी के तौर-तरीके में इसे देखा-परखा जा सकता है।
इस मायने में भी उपचुनावों के जनादेश का अपना विशिष्ट महत्त्व है। प. बंगाल की कांथी द.विधान सभा सीट के नतीजे ने बताया है कि वहां वामपंथ की राजनीति गए जमाने की बात हो चली है। यहां से तृमूकां का उम्मीदवार जीता है और भाजपा नंबर दो पर रही। विगत चुनाव में नंबर दो पर रहने वाली माकपा इस बार अपनी जमानत भी बचा नहीं पाई। पिछले पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद ईवीएम पर सवाल करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए इस चुनाव ने बुरे संकेत दिए हैं। राजौरी गार्डन से उनके प्रत्याशी की जमानत नहीं बची है।
उनके लिए यह सबक है। ‘आप’ नेताओं का बड़बोलापन, अहंकार, आक्रामक शैली, असंयत भाषा और विरोधी पार्टियों पर अनर्गल आरोप लगाने की राजनीति पार्टी की हार की एक बड़ी वजह मानी जा रही है। आप के नेताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण की जरूरत है। नौकरशाहनुमा नेताओं को लोकतंत्र के आचार-व्यवहार में ढलना अभी बाकी है। कुला मिला कर यह सब को नसीहत देने वाला जनादेश है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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