हाजीवली की दरगाह: हरे भरे पेड़ की जड़ें किसी को नहीं दिखतीं

Bhopal Samachar
श्याम चैरसिया/कुरावर/राजगढ़। एतिहासिक हाजीवली की दरगाह तक श्रद्धालूओं, पर्यटकों को खींचने के लिए पर्यटन विभाग दरगाह-सौलह खंब स्थल को तराश खूबसुरत, लुभावना, मोहक बनाने में जुटा हुआ है। पर्यटक विभाग सौलहखंब के पास और दरगाह परिसर के अंदर पार्क विकसित कर चुका है लेकिन प्रचंड गर्मी से उपजने वाले जल सकंट के चलते पार्क के पौधों को हरा-भरा रखना चुनौति से कम नहीं है। 

सौलहखंब के बारे में इतिहासिक दिव्य क्विंदतियां है। लोक कथा के मुताबिक कोटरा के पहाडों में कहीं पारस पत्थर था। पारस के स्पर्श से एक गडरिये की बकरियों, भेडों की लौहे की नाल स्वर्ण में बदल जाती थी। इस तरह से गडरिये के पास अथाह स्वर्ण जमा हो गया था। आवागमन और संचार के साधनों के धौरतम अकाल के दौर में गडरिये ने अपनी कीर्ति दूर दूर तक पहुुंचाने के लिए 16 मंजिल उंचे सौलह खंब में ज्योत प्रज्जलित की। अदभुद ज्यौत के प्रकाश का पीछा करते हुए मुगल सेनापति कोटरा के वैभव पर चढ आया। 

धौरतम धमासान युद्ध में राजा श्याम सिंह खिची खेत रहे। सेनापति से सौलहखंब ढहा दिया। सौलहखंब के पास दरगाह बना दी। दरगाह के आसपास सेकडों कब्र है। दूसरी मंजिल पर स्थित दरगाह की खासियत ये है कि दरगाह की छाया किसी छत से नहीं बल्की एक वृ़क्ष से होती है। चमत्कार-पेड की जड़ें पहली मंजिल या जमीन पर कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। भीषण अकाल के बाबजूद पेड किसी ने सूखते नहीं देखा। जियारत करने दूर दूर से लोग आते है। 

सौलहखंब की नक्कासी, कला, अध्यात्म भी प्रेरक और अविस्मरणीय है। राजा श्याम सिंह की पत्नि ने अपने पति की याद में 03 किलोमीटर दूर ग्राम सांका में एक दिव्य समाधि-मंदिर का निमार्ण करवा दिया। समाधि-मंदिर की कला कौशल, धार्मिकता और अध्यात्म को देखने दूर दूर से सैलानी आते है। 

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