सिंधिया तो स्वराज के सैनिक थे, फिर अंग्रेजों के मित्र कैसे हो गए: इतिहास की बात

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी/भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अटेर विधानसभा के उपचुनाव में इतिहास की परतें कुरेद दीं हैं। उन्होंने कहा कि 'सिंधिया ने अंग्रेजों के साथ मिलकर जनता पर जुल्म ढाए।' शिवराज सिंह भाजपा नेता हैं अत: इस नाते उन पर लांछन लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने भाजपा की संस्थापक राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अपमान किया है लेकिन यदि यहां बात चुनावी राजनीति या भाजपा की ना की जाए तो देखना होगा कि आखिर क्या हुआ था जो स्वराज की लड़ाई लड़ने वाले सिंधिया अंग्रेजों के मित्र हो गए। क्या कोई मजबूरियां थीं या फिर अपने फायदे के लिए। 

ये कहानी मध्यप्रदेश की शुरूआत से शुरू होती है। भारत का दक्षिण भाग मराठों के कब्जे में था। अंग्रेज उनकी संयुक्त सेना के डर से हमला नहीं कर पाते थे। इससे पहले मुगल भी मराठों पर हमला करके दक्षिण जीतने का सपना हमेशा देखते रहे। सन् 1700 के आसपास जब मराठों की सत्ता स्थाई होती चली गई तो पेशवा बाजीराव ने उसके विस्तार की योजना बनाई। सन् 1722-23 में पेशवा बाजीराव ने सबसे पहले हिंदू राज्य मालवा पर हमला कर लूटा। राजा गिरधर बहादुर नागर उस समय मालवा का सूबेदार थे। उन्होंने मराठों के आक्रमण का सामना किया लेकिन जयपुर नरेश सवाई जयसिंह मराठों के पक्ष में था। पेशवा के भाई चिमनाजी अप्पा ने गिरधर बहादुर और उसके भाई दयाबहादुर के विरूद्ध मालवा में कई हमले किए। सारंगपुर के युद्ध में मराठों ने गिरधर बहादुर को हरा दिया। जीता हुआ मालवा का क्षेत्र उदासी पवार और मल्हारराव होलकर के बीच बंट गया। बुरहानपुर से लेकर ग्वालियर तक का भाग पेशवा ने सरदार सिंधिया को दे दिया गया। इसके साथ ही सिंधिंया ने उज्जैन, मंदसौर तक का क्षेत्र अपने अधीन कर लिया। 

सन् 1731 में अंतिम रूप से मालवा मराठों के तीन प्रमुख सरदारों पवार (धार एवं देवास) होल्कर (पश्चिम निमाड़ से रामपुर-भानपुरा तक) और सिंधिया (बुहरानपुर, खंडवा, टिमरनी, हरदा, उज्जैन, मंदसौर व ग्वालियर) के अधीन हो गया। अब भोपाल पर भी मराठों की नजर थी। हैदराबाद के निजाम ने मराठों को रोकने की योजना बनाई, लेकिन पेशवा बाजीराव ने शीघ्रता की और भोपाल जा पहुंचा तथा सीहोर, होशंगाबाद का क्षेत्र उसने अधीन कर लिया। सन् 1737 में भोपाल के युद्ध में उसने निजाम को भी हरा दिया। युद्ध के उपरांत दोनों की संधि हुई। निजाम ने नर्मदा-चंबल क्षेत्र के बीच के सारे क्षेत्र पर मराठों का आधिपत्य मान लिया। इसमें से ज्यादातर इलाका सिंधिया को मिला। 

जब मराठों के सभी सरदार अपने अपने इलाकों में पूरी तरह से काबिज हो गए और अंग्रेजों का खौफ खतम हो गया तो वो आपस में ही लड़ने लगे। इस फूट का फायदा अंग्रेजों ने उठाया और उन्होंने सिंधिया पर हमला कर दिया। 16 फरवरी 1781 को अंग्रेज सेनापति जनरल केमके ने सीपरी (वर्तमान में शिवपुरी) में सिंधिया को बुरी तरह से पराजित कर लिया। इससे पहले वो ग्वालियर पर कब्जा कर चुके थे। अब सिंधिया के पास कुछ नहीं बचा था। घबराए हुए सिंधिया ने 17 मई 1782 को सिंधिया ने अंग्रेजों से संधि कर ली। इतिहास में इसे 'सालबाई संधि' के नाम से दज किया गया। 

'सालबाई संधि' के बाद मराठा संघ टूट गया। 1802 में बाजीराव पेशवा ने अंग्रेजों से संधि कर ली इसे बेसिन संधि कहा गया। ये मराठा संघ के लिए सबसे अपमानजनक संधि माना गया। इसके बाद इंदौर के यशवंतराव होल्कर ने भी अंग्रेजों से युद्ध हारने के बाद हाथ मिला लिया और भारत में सशक्तिशाली व स्वराज के संस्थापक मराठा संघ का खात्मा होता चला गया। तब से लेकर आज तक 'स्वराज' अब एक सपना मात्र रह गया है। 

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