
यह दर्द इसलिए है क्योंकि इन परीक्षाओं के लिए लाखों लाख उच्च शिक्षित युवा इंतजार कर रहे हैं। स्कूलों में जगह खाली हैं लेकिन नौकरशाही की चतुराई बेरोजगारों को ऐसे झटके दे रही है कि 2014 से बीएड/डीएड कर चुके युवाओं की यह कौम, कौमा में चल रही है। नौकरियां 25000 हैं, प्रतीक्षार्थियों की संख्या 5 लाख से ज्यादा है। सब जानते हैं कि सबको नौकरी नहीं मिलेगी, लेकिन कम से कम परीक्षा तो हो। रिजल्ट तो आए। समस्या यह है कि बीएड/डीएड की पढ़ाई और संविदा शिक्षक भर्ती परीक्षा के ट्यूशन में मोटी रकम खर्च करने के बाद बिना लड़े हार जाने का मन भी तो नहीं करता। और फिर कोई दूसरी नौकरी भी नहीं जहां बीएड/डीएड डिग्री का उपयोग होता हो।
मध्यप्रदेश में यह ऐसे गरीबों की फौज है जो दिखने में गरीब नहीं दिखती परंतु इतनी लाचार, इतनी मायूस और इतनी मजबूर कौम कोई हो नहीं सकती। 2014 से लगातार हर साल व्यापमं के कलेण्डर में भर्ती परीक्षा की तारीख घोषित होती है और फिर हटा दी जाती है। इस बार फिर हटा दी गई। समझ नहीं आता ऐसा गंदा मजाक क्यों किया जाता है। एक बार में ऐलान क्यों नहीं कर देते, नहीं करेंगे भर्ती। हर साल एक अटैक क्यों देती है सरकार।