राकेश दुबे@प्रतिदिन। कानपुर के आसपास लगातार कई हादसे हो रहे हैं। पिछले साल नवम्बर में कानपुर के पास बड़ा हादसा हुआ था। फिर टुंडला के पास मालगाड़ी और पैसेंजर गाड़ी टकरा गई। अब महोबा के पास महाकौशल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई। यह गाड़ी बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों की जीवन-रेखा की तरह है। शुक्र है कि इस बार जानमाल का कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ। इसके अलाव कई छोटे-मोटे हादसे भी हुए। हादसे ही नहीं, इलाहाबाद से लेकर कानपुर-अलीगढ़ के सबसे व्यस्त मेनलाइन में गाड़ियों के लेट होने का सिलसिला भी इस कदर जारी है कि रेल यात्रा की सोचकर दहशत होने लगी है। हालांकि, कुछेक हादसों में किन्हीं असामाजिक तत्वों की विध्वंसक गतिविधियों से इनकार करना मुश्किल है।
कानपुर के पास वाले बड़े हादसे में आतंकी गुटों की साजिश की आशंका भी व्यक्त की गई थी। लेकिन रेलवे तंत्र की लापरवाहियों और रेलवे ट्रैक की जर्जर हालत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लंबे समय से रेल की बुनियादी संरचना में खास बदलाव नहीं हो पाया है। वोटबैंक के खातिर लगातार कई रेल मंत्री नई गाड़ियां चलाने की फिराक में तो रहे हैं लेकिन रेलवे की दशा सुधारने पर सबसे कम चिंताएं की गई हैं। दुर्घटनाओं और यात्रियों की सुरक्षा के बारे में हर बजट में बस चिंताएं दिखती रही हैं।
इस बार रेल बजट का अलग से प्रावधान भी खत्म कर दिया गया। दलील यह दी गई कि पटरियां दुरुस्त करने और सुविधाएं बेहतर करने के लिए यह जरूरी था लेकिन रेल मंत्री सुरेश प्रभु जिस तरह निजी क्षेत्र को रेल के विभिन्न क्षेत्रों में न्योता दे रहे हैं। उससे एक शंका भी पैदा होती है कि रेल बजट को खत्म करने की वजहें कुछ और भी हो सकती हैं।
रेल विभाग की चिंताएं कुछ स्टेशनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने वगैरह की तो दिख रही हैं लेकिन रेल की बुनियादी सुविधाओं को सुधारने पर ज्यादा ध्यान नहीं लग रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि साफ-सफाई और सुंदरता का महत्त्व नहीं है मगर सबसे जरूरी सुरक्षित और समयबद्ध यात्रा करना है। यह तभी होगा जब पटरियों और सिग्नल व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए. अगर इन चीजों पर शिद्दत से ध्यान नहीं दिया गया तो कुछ समय बाद हालात और गंभीर हो सकते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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