
6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। सीबीआई ने कोर्ट से बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी और मध्य प्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती सहित 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलने की मांग की थी। सीबीआई की ओर से पेश वकील नीरज किशन कौल ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि रायबरेली की कोर्ट में चल रहे मामले को भी लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर कर ज्वाइंट ट्रायल होना चाहिए।
इससे पहले छह अप्रैल को मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश नरीमन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले के कई आरोपी पहले ही मर चुके हैं और ऐसे ही देरी होती रही तो कुछ और कम हो जाएंगे। इस दौरान आडवाणी के वकील के के वेणुगोपाल ने मुकदमा ट्रांसफर करने का पुरजोर विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे केस ट्रांसफर नहीं कर सकती है। रायबरेली में मजिस्ट्रेट कोर्ट है, जबकि लखनऊ में सेशन कोर्ट इस मामले को सुन रहा है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान के कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करके रायबरेली में चल रहे मामले को लखनऊ की विशेष अदालत में ट्रांसफर कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले ही काफी देरी हो चुकी है। लिहाजा वह यह सुनिश्चित करेगी कि इस मामले की सुनवाई अगले 2 साल में पूरी हो और प्रतिदिन इसकी सुनवाई हो।
क्या था मामला? क्या पड़ेगा असर
लोअर कोर्ट ने हटाए थे आरोप बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत बीजेपी-वीएचपी के 13 लीडर्स पर आपराधिक साजिश रचने (120बी) का केस दर्ज किया गया था। रायबरेली की लोअर कोर्ट ने सभी पर से ये आरोप हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।
सीबीआई को आपत्ति थी, फैसले के खिलाफ हुई थी अपील
सीबीआई ने लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इसी की सुनवाई चल रही है। पिटीशन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के ऑर्डर को खारिज करने की मांग की गई है। सितंबर 2015 को सुनवाई के दौरान सीबीआई ने SC से कहा था, "एजेंसी के फैसले किसी से प्रभावित नहीं होते। बीजेपी नेताओं के खिलाफ क्रिमिनल कॉन्स्पिरेसी के चार्ज सीबीआई के कहने पर नहीं हटाए गए। सीबीआई के फैसले पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं। एजेंसी के सभी फैसले तथ्यों और कानून को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। इस बात का सवाल ही नहीं उठता कि कोई व्यक्ति या संस्था एजेंसी के फैसलों को प्रभावित कर सके।