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कैंसर जैसी जटिल बिमारी से जूझ कर बाहर निकली मनीषा कहती हैं, 'जब पता चला कि मुझे कैंसर हो गया है तब मुझे पता नहीं था कि मैं जिंदा रहूंगी या मरूंगी। मैं हमेशा मौत के साए में जीती रही। हमेशा अपने डॉक्टर से पूछती थी की मैं कब मरूंगी। कितना टाइम है मेरे पास। पर एक दिन मुझे एहसास हुआ कि मौत की तलवार मेरे सिर पर हमेशा लटकती रहेगी, इससे डरना नहीं लड़ना होगा उसके बाद मैंने इसी सोच के साथ जीना सीख लिया। मैं जब भी किसी कैंसर से लड़कर जीतने वाले को देखती हूं। मुझे उसमें खुद की छवि दिखाई देती है।'
मनीषा आगे बताती हैं, 'जब मुझे डॉक्टर ने कीमो करवाने की सलाह दी तो मुझे बताया गया कि कीमो से कैंसर के सेल्स मरते है। मेरे पास कीमो करवाने के अलावा कोई और चारा नहीं था। मुझे यह भी मालूम था की अब मेरे बाल गिर जाएंगे पर मौत से बचने का यही एक तरीका था। बस फिर क्या था कीमो थिरेपी शुरू हुई और मेरे बाल तेजी से झड़ने लगे। अपने झड़ते बालों को देखकर मैं अंदर से दहल गई थी। मुझे बहुत डर महसूस हो रहा था। भारत और नेपाल में बालों को महिलाओं की खूबसूरती से जोड़कर देखा जाता है इसलिए बालों का महत्व मैं समझ रही थी। मैं हमेशा अपने बाल कटवाना चाहती थी लेकिन कैंसर या कीमो के लिए बिल्कुल नहीं।'
वह आगे बताती हैं, 'मैं जब सुबह उठती तो बिस्तर और तकिये के आस-पास पर अपने बालों की लटों को अलग पाती थी, यह देखना बहुत बुरा महसूस होता था। रोज-रोज झड़ते बालों को देखने की हिम्मत नहीं थी मुझमें इसलिए अपने बाल कटवा दिए थे। बिना बालों के आदमी और भी ज्यादा बीमार लगता है, फिर चाहे वह उतना बीमार भले ही न हो। मैं कैंसर के मरीजों का दर्द अच्छी तरह समझ सकती हूं।'