नई दिल्ली। नियोक्ता ही तय करेगा कि उसके कर्मचारी का काम संतोषजनक है या नहीं। यह काम कोर्ट नहीं करेगा, क्योंकि नियोक्ता ने ही उससे काम लिया है। यह टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट ने एक शिक्षक को निकालने के स्कूल प्रशासन के आदेश को बरकरार रखा है। शिक्षक ने स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कोर्ट की शरण ली थी। कर्मचारी का आरोप है कि उसका काम संतोषजनक था फिर भी उसे नौकरी से निकाल लिया।
शिक्षक ने स्कूल प्रशासन के आदेश को पहले दिल्ली स्कूल ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी। ट्रिब्यूनल ने शिक्षक को फिर से बहाल करने का आदेश दिया था। स्कूल प्रशासन ने ट्रिब्यूनल के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति वाल्मीकि जे. मेहता ने ट्रिब्यूनल के आदेश को रद करते हुए कहा कि 2013 में हाई कोर्ट की एक अन्य पीठ ने फैसले में साफ किया था कि गंभीर से गंभीर मामलों में प्रोबेशन की अवधि तीन से छह वर्ष होनी चाहिए।
इसके बाद ही किसी मामले पर विचार किया जाएगा। अदालत ने ट्रिब्यूनल के निर्णय पर हैरानी जताते हुए कहा कि उसने हाई कोर्ट के 2013 के फैसले का ध्यान नहीं रखा। राजधानी के एक निजी स्कूल ने अप्रैल 2011 में प्रोबेशन पर शिक्षक को रखा। मार्च 2014 में स्कूल प्रशासन ने उसके काम को असंतोषजनक बताते हुए नौकरी से निकाल दिया था।