नई दिल्ली। महाराष्ट्र के रिजर्व पुलिस बल की नो-शेव नीति का पालन न करने के लिए पिछले पांच सालों से निलंबित चल रहे एक मुस्लिम पुलिस कांस्टेबल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की बहाली के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। महाराष्ट्र रिजर्व पुलिस फोर्स में कांस्टेबल रहे जहीरुद्दीन शमसुद्दीन बेदादे के वकील मोहम्मद इरशाद हनीफ ने कहा, 'इस्लाम में अस्थाई दाढ़ी रखने की अवधारणा नहीं है।' चीफ जस्टिस ने पुलिसकर्मी के वकील से कहा, 'हम आपके लिए बुरा महसूस करते हैं। आप नौकरी पर वापसी क्यों नहीं करते?' वकील ने इस मामले में जल्द सुनवाई की मांग थी। हालांकि, वकील के साफ जवाब नहीं देने पर चीफ जस्टिस ने जल्द सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकरा दिया।
जहीरुद्दीन को शुरू में दाढ़ी रखने की इजाजत दी गई थी, बशर्ते वह छंटी हुई और साफ हो। बाद में कमांडेंट ने इस मंजूरी को वापस ले लिया और इस शख्स के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12 दिसंबर 2012 को इस पुलिसकर्मी के खिलाफ फैसला दिया था। अदालत ने कहा था कि फोर्स एक सेक्युलर एजेंसी है और यहां अनुशासन का पालन जरूरी है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि दाढ़ी रखना मौलिक अधिकार नहीं है, क्योंकि यह इस्लाम के बुनियादी उसूलों में शामिल नहीं है।
इसके बाद बेदादे ने राहत के लिए सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2013 में उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। इसके बाद से केस सुनवाई के लिए पेंडिंग था। उस वक्त उनके वकील ने सैन्य बलों के लिए 1989 के एक सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा था कि नियमों में दाढ़ी रखने की इजाजत है। वकील की यह भी दलील थी कि इस्लाम के हदीस कानून के तहत दाढ़ी रखना जरूरी है और यह पैगंबर मोहम्मद की तरफ से बताई गई जीवन शैली का मामला है।