नई दिल्ली। चांदनी चौक के लाल मंदिर में क्षयरोग से पीड़ित एक बुजुर्ग ने शरण ले रखी है। ये मध्य प्रदेश के दमोह से आए हैं। जन आहार से एक समय का खाना खा लिया और फिर भूख लगी तो सड़क किनारे से थोड़ा नमकीन खरीद लिया। इनकी कहानी समझने से पहले यह बात दिमाग पर चोट कर गई कि इनकी जवान बेटी ने आग लगा कर खुदकुशी कर ली, बेटा सल्फास खाकर मर गया और दो बच्चों की खुदकुशी के गम में इनकी पत्नी विक्षिप्त हो चुकी हैं। 70 साल के बुजुर्ग का यह हाल क्यों हुआ? देश की राजधानी में ये किस बात का इंसाफ मांग रहे हैं?
निर्मल कुमार जैन दमोह जिले के भूरी बिजौरी सेवा सहकारी समिति बैंक में काम करते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता होने के नाते आपातकाल में जेल गए। एक साल से ज्यादा वक्त बीतने के बाद वे 1977 में नौकरी पर पहुंचे। कुछ दिन बाद ही सहकारी बैंक के जिला प्रबंधक राम नारायण दुबे की ओर से लगाए गए गबन के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप है कि बैंक प्रबंधक कांग्रेस समर्थक थे। मामले की सुनवाई के बाद 1993 में मजिस्ट्रेट अतुल सराफ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियुक्त निर्मल जैन के ऊपर गबन का आरोप प्रमाणित नहीं होता। मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि कई बार कहे जाने के बाद वादी सबूत मुहैया कराने में नाकाम रहा।
एक गलत आरोप ने जैन की जिंदगी ही बदल गई। अपने खिलाफ लगे बेबुनियाद आरोप को लेकर वे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष व मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तक से गुहार लगा चुके हैं। अपने साथ हुए अन्याय की ओर ध्यान दिलाने के लिए वे 2001 में लोकसभा की दर्शक दीर्घा तक में कूद चुके हैं, लेकिन कोई उन्हें इंसाफ नहीं दिला पा रहा।
बेटी-बेटे ने खुदकशी की, पत्नी ने खोया मानसिक संतुलन
जैन ने बताया कि मध्य प्रदेश शासन ने मानवाधिकार आयोग को उनके बारे में जाली कागजात भेज दिए। फिर वे मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जेएस वर्मा के पास पहुंचे और उनसे कहा कि उनका 25 साल का बेटा राजेश व्यथित रहता है, उसका कुछ कीजिए। जस्टिस वर्मा ने मध्य प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पत्र लिखा कि यह मेरी निजी दरख्वास्त है कि निर्मल जैन की मदद की जाए। जैन का दावा है कि जस्टिस वर्मा ने सिंह को फोन भी किया था। जैन ने कहा-‘मैं दिग्विजय सिंह से मिला और उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वे मेरे बेटे को नौकरी देंगे।’ उसके बाद मैं और मेरी पत्नी दो महीने तक दिग्विजय को पत्र लिखते रहे लेकिन कुछ नहीं हुआ। तब उन्होंने 8 अगस्त 2000 को देश के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा कि उनका बेटा भी अपनी बहन की तरह खुदकशी कर लेगा। ठीक 15 दिन बाद 23 अगस्त 2000 को जन्माष्टमी के दिन उनका बेटा सल्फास खाकर मर गया। उनकी पत्नी ने मानसिक संतुलन खो दिया। इसके बाद जब वे अपनी पत्नी को लेकर मावाधिकार आयोग के दफ्तर पहुंचे तो उनसे कहा गया कि उनका केस खत्म हो गया है। उनके मानवाधिकार के मामले को सिर्फ नौकरी का मामला बना दिया गया।
जैन की शिकायत उन संवैधानिक संस्थानों से है जिनका काम कमजोर तबके के लोगों की आवाज सुनना है। मानवाधिकार आयोग के पत्रों की राज्य शासन में कोई सुनवाई नहीं, मुख्यमंत्री के आदेश की कोई सुनवाई नहीं। शासन की तरफ से आयोग को जाली दस्तावेज भेजे जाते हैं और इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है।सरकारी तंत्र की नाकामियों ने जैन परिवार की जिंदगी को सिकोड़ दिया। जैन की त्रासदी का असर उनके बच्चों पर पड़ा। उनकी बड़ी बेटी बबीता ने 10 जुलाई 1999 को आग लगा कर खुदकुशी कर ली थी। बहन की मौत और सरकारी दरवाजों और आयोगों से अपने पिता को धक्के खाते देख व्यथित उनके इकलौते बेटे ने सल्फास खाकर खुदकुशी कर ली। पिता की परेशानियों के कारण जैन के बेटे ने पान के पत्तों की कटाई कर उससे मिली मजदूरी से अपनी पढ़ाई पूरी की थी, लेकिन इतने संघर्ष के बाद पिता के हश्र ने जिंदगी और समाज से उसका हौसला पूरी तरह तोड़ दिया था।
नई सरकार से उम्मीद
तीन बच्चों, पत्नी के साथ अच्छी जिंदगी बिता रहे जैन पर एक झूठे आरोप का असर यह हुआ कि आज के दौर में उनके दो बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं, उनका घर बिक चुका है, पत्नी मानसिक रोगी है और वे खुद क्षयरोग व वृद्धावस्था की अन्य परेशानियों से गुजर रहे हैं। जैन कहते हैं, ‘देश में बनी नई सरकार भ्रष्टाचार और कमजोर तबकों के हित की बात करती है। उनके जैसे लोगों को इंसाफ कब मिलेगा? उनके गुनहगारों को सजा कौन दिलवाएगा?’ जैन चाहते तो अपने खिलाफ हुई नाइंसाफी को भुला कर नए सिरे से जिंदगी शुरू कर सकते थे, लेकिन वे इंसाफ मांगने के संग्रामी बन बैठे हैं। इस ढलती उम्र में सत्ता के गलियारों में घूमते हैं, पत्रकारों से बात कहते हैं। भ्रष्ट व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए वे आज भी थके नहीं है। इंतजार है कि व्यवस्था भी सोते-सोते थक जाए और एक बार नींद से जाग कर देखे कि मानवाधिकार आयोग के सामने बैठे रहे एक मानव की क्या हालत हो गई है।
25 साल में पूरी तरह बर्बाद
निर्मल जैन का कहना है कि केस जीतने के बाद मैंने बैंक से पैसा और नौकरी देने की मांग की, लेकिन यह बात नहीं मानी गई। जैन ने कहा कि 25 साल में वे पूरी तरह से बर्बाद हो चुके थे, इसलिए वे मजिस्ट्रेट और सरकारी वकील के खिलाफ पर्चे बांटते थे। जहां-जहां इनकी नियुक्ति होती थी वे पर्चा बांटने पहुंच जाते थे। बिजावर अदालत के अंदर सरकारी वकील ने उन्हें पीट-पीट कर खून से नहला दिया। अदालत के सामने प्रदर्शन करने के कारण पुलिस ने उन्हें लाठियों से मारा। वे एक हफ्ते जेल में रहे। उसके बाद इंसाफ मांगने जबलपुर हाई कोर्ट गए। वहां वकीलों ने लाठियों से मारकर उनके पैर तोड़ दिए। उन्होेने अपनी अर्जी मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस एमएन वेंकटचलैया को भेजी। वेंकटचलैया ने उन्हें बुलाया और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पत्र लिख कर उनकी मदद करने को कहा था।