योगेन्द्र पवार। प्रदेश के गठन से लगभग 10 संवर्गों के समकक्ष रहे इस एकल संवर्ग को सुनियोजित ढंग से 1986 में सिंहदेव समिति की अनुशंसा पर मंत्रालयीन और गैर-मंत्रालयीन संवर्ग में बॉंट दिया गया । ब्रम्हस्वरूप समिति ने इस विभाजन को असंगत्, असद्भाविक और अन्यायपूर्ण मानते हुए राय दी कि, मंत्रालय और गैर-मंत्रालय शीघ्रलेखकों का वेतनमान समान होना चाहिये और लिपिकीय और शीघ्रलेखकों के काडरों में पदोन्नति के अवसरों में भी असमानता नहीं होनी चाहिये।
05/17 अक्टूबर,2006 साप्रवि के आदेश से भविष्य में होने वाली भर्तियों के लिए प्रवेश वेतनमान 5500 के स्थान पर 4500 करते हुए पदनाम ’निज सहायक’ से ’स्टेनोग्राफर’ किया गया, किन्तु यह स्पष्ट किया गया कि ’’वर्तमान में कार्यरत् अधिकारी/कर्मचारियों के वेतनमान में कमी नहीं की जावेगी ।’’ गैर-मंत्रालयीन शीघ्रलेखकों के असंगत् विभाजन की यह आदेश स्वतः पुष्टि करता है।
म.प्र.राजपत्र(असाधारण), 25 मार्च,2008 में स्पष्ट उल्लेखित है कि, ’मानक वेतनमान शीघ्रलेखक’ का पद वर्तमान में विद्यमान नहीं है ।’ यह भी उल्लेखित है कि, साप्रवि के आदेश दिनॉंक 12.09.2003 द्वारा शीघ्रलेखकों के पदों को निज सहायक के पदों में समायोजित किया गया है ।’’ जो यह दर्शाता है कि, साप्रवि के आदेश 5/17 अक्टूबर,2006 का अनुपालन मार्च, 2008 तक नहीं हुआ था, यानि मार्च,2008 तक मंत्रालय में ’निज सहायक’ का पद विद्यमान था, ’शीघ्रलेखक’ का नहीं।
वर्ष 2006 में छटवें केन्द्रीय वेतनमान के निर्धारण में जहॉं इस संवर्ग को ग्रेड-पे 3600 और वेतनमान 5500 का वेतनमान प्राप्त होना था, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वेतन संवर्गों को सीमित करने के प्रयास में इस संवर्ग को ग्रेड पे- 3200 और वेतनमान 4500 पर रखा जाकर फिर आर्थिक नुकसान पहुॅंचाया गया ।
एक आरटीआई पर अग्रवाल वेतन आयोग की अनुशंसा के परिप्रेक्ष्य में साप्रवि द्वारा पत्र क्र. 2377/20.11.2011 से इस आशय का प्रत्युत्तर दिया है कि, ’’मंत्रालय में शीघ्रलेखक का पद 26.09.1998 से समाप्त कर दिया गया था । यह पद साप्रवि के आदेश 5/17 अक्टूबर,2006 द्वारा वेतनमान रू. 4500-7000 में पुनर्स्थापित किया गया है ।’’ इसी आदेश से शीघ्रलेखकों के वेतनमान एकसमान हो जाने का हवाला देते हुए प्रत्येक संवर्ग की अलग-अलग सेवा शर्तों के आधार पर वेतनमान व पदोन्नति अवसरों की मॉंग आयोग द्वारा खारिज़ कर दी गई । मगर अग्रवाल वेतन आयोग द्वारा की गई अनुशंसा के परिप्रेक्ष्य में ये तथ्य ध्यान में रखे जाने चाहिये थे कि, स्टेनोग्राफर संवर्ग वर्ष 1986 तक एकल संवर्ग था, जिसे अन्यायपूर्ण, असंगत् तरीके से विभाजित किया गया । जब इस संवर्ग की शैक्षिक और तकनीकी अर्हता, कर्त्तव्य, सेवा शर्तें, परीक्षा पद्धति एकसमान हैं, तब वेतनमान/पदोन्नति अवसरों में भिन्नता क्यों होनी चाहिये ? फिर मंत्राीलयीन सेवा हेतु उन्हें मंत्रालयीन भत्ता दिया ही जाता है, जिसमें समय-समय पर वृद्धि होती रहती है।
समयमान वेतनमान लागू होने से पदोन्नति अवसरों की विसंगति हल हो जाने के अग्रवाल वेतन आयोग का मत भी उचित प्रतीत नहीं होता । समयमान वेतनमान की तुलना पदोन्नति की जाना भी कदापि उचित नहीं है, क्योंकि प्रथम 02 समयमान वेतनमान में सचिवालयेत्तर शीघ्रलेखकों का ग्रेड-पे भले कुछ बढ़ता हो, मगर मूल वेतन वही रहता है, जबकि विसंगति तो मूल वेतन में ही है । यही नहीं, समयमान वेतनमान पाकर भी पदनाम और अधिकार में कोई अन्तर नहीं आता।
अतएव प्रदेश के सबसे छोटे बमुश्किल 1000 की संख्या वाले अनुशासित संवर्ग, जिसका अपना कोई पंजीकृत संघ तक नहीं है, और न ही मॉंगों के निराकरण हेतु इनके द्वारा हड़ताल का सहारा लिया गया, की वेतनमान/पदोन्नति विसंगतियॉं निराकृत कराये जाने हेतु माननीय मुख्यमंत्री जी से विनम्र अनुरोध है । इस संवर्ग की मॉंगों की पूर्ति से प्रदेश सरकार पर कोई बहुत बड़ा वित्तीय भार भी नहीं आने वाला है।