भोपाल। मप्र हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि सामान्य थानों की पुलिस और जिला पुलिस को भ्रष्टाचार के मामलों में एफआईआर दर्ज करने या छानबीन करने का अधिकार नहीं है। इसके साथ ही अब भ्रष्टाचार के वो तमाम मामले संकट में आ गए हैं जो मप्र के सैंकड़ों थानों में दर्ज हैं। इस मामले को आधार माना जाए तो सभी एफआईआर रद्द हो जाएंगी। भ्रष्टाचार के हजारों मामले सुनवाई से पहले ही खत्म हो जाएंगे। अत: इस फैसले के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।
होशंगाबाद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी कोलार रोड निवासी रवींद्र कुमार दुबे ने 2015 में हरदा पुलिस को शिकायत की थी कि सहकारी केंद्रीय बैंक होशंगाबाद की मुख्य शाखा हरदा के ब्रांच मैनेजर सुदर्शन जोशी एवं कैशियर भावना काले द्वारा 2.70 करोड़ रुपए बैंक से गबन किया है। जांच के बाद पुलिस ने जनवरी 2015 सुदर्शन जोशी और भावना काले के खिलाफ धोखाधड़ी की विभिन्न धाराओं में एफआईआर की।
विवेचना के दौरान पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया। पूछताछ में खुलासा हुआ कि बैंक हिसाब में जो गड़बड़ी की जाती थी उसकी जानकारी दुबे के साथ जिला सहकारी केंद्रीय बैंक हरदा के नोडल अधिकारी मनोज एहलाद को थी। हेमंत द्वारा 25 हजार रुपए प्रतिमाह दुबे और एहलाद को दिए जाते थे। इसके बाद पुलिस ने धारा 120बी के तहत केस दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार किया था। साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा बढ़ाई गई।
इसी मामले के खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट की डबल बैंच में अपील की गई थी। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने एफआईआर निरस्त करते हुए आदेशित किया कि जिलों के सामान्य थानों में इस तरह के मामले दर्ज नहीं किए जा सकते और जिला पुलिस भ्रष्टाचार के मामलों की जांच नहीं कर सकती।