राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब एक नई मुहिम चलने जा रही है कि होटलों व रेस्तरांओं के मेन्यू में खाद्य पदार्थों की कीमतों के साथ प्लेट में पहुंचने वाली उनकी मात्रा का भी उल्लेख हो। सत्तारूढ़ दल के करीबी संगठनों की तरफ से तरह-तरह की पाबंदियों, रोकों, निषेधों का जैसा सिलसिला शुरू हो गया है उसे देखते हुए यह नितांत स्वाभाविक है कि खाद्य मंत्री रामविलास पासवान का बयान आया और बयान के बाद सोशल मीडिया पर तरह-तरह की आशंकाएं जताई जाने लगीं।
हालांकि सरकार की तरफ से इन सबका खंडन करते हुए कहा गया कि खाने पर किसी तरह की रोक का कोई विचार नहीं है, न ही होटल मालिकों से कोई जबर्दस्ती होगी। होटल व रेस्तरां मालिकों से ही पूछा जाएगा कि इस दिशा में कैसे आगे बढ़ा जाए। खाने की बर्बादी रोकने के लिए किसी कानूनी प्रावधान की जरूरत है या होटल मालिक इसे स्वेच्छा से लागू कर सकते हैं। यानी जबर्दस्ती की बात न करते हुए भी जबर्दस्ती का संकेत तो है ही। आग्रह भोजन की मात्रा को लेकर नहीं, मेन्यू में उस मात्रा का उल्लेख भर करने का है।
बहरहाल, खाद्यमंत्री को इस अभूतपूर्व कदम का आइडिया प्रधानमंत्री की उस ‘मन की बात’ से मिला जिसमें उन्होंने बताया था कि देश में कितना भोजन बर्बाद हो जाता है और गरीबों के साथ यह कितना बड़ा अन्याय है। खाद्यमंत्री की इस पहल से इतना तो स्पष्ट हो ही गया है कि वह या उनके मंत्रालय के ऑफिसर ‘मन की बात’ बड़े ध्यान से सुनते हैं और इसे काफी गंभीरता से लेते हैं। ज्यादा अच्छा होता कि वह परिणामों की गंभीरता को लेकर भी थोड़े गंभीर होते। सालाना जिस ६.७ करोड़ टन तैयारशुदा खाने की बर्बादी का रोना रोया जा रहा है वह होटलों या रेस्तरांओं में बचे या थालियों में छूटे भोजन के रूप में ही नहीं होता। देश में खाद्य पदार्थों की बर्बादी का सबसे बड़ा हिस्सा वह है जो स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन की समुचित व्यवस्था के अभाव में खेतों से प्लेट तक पहुंचने के पहले ही नष्ट हो जाता है। बेहतर होता कि खाद्य मंत्रालय इस बारे में कुछ करता हुआ दिखता। सरकार को इस ओर भी देखना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए