
अब स्वास्थ्य विभाग महिलाओं की इस तरह की दिक्कतों से बचाने के लिए गर्भावस्था के दौरान काउंसलिंग कर रहा है, जिससे ब्लड प्रेशर का नियंत्रित रखा जा सके। इसी तरह की दिक्कत डायबिटीज के चलते भी आ रही है। कम उम्र में महिलाएं डायबिटीज की शिकार हो रही हैं। गर्भवती होने पर उनकी डायबिटीज बढ़ने लगती है। ऐसे में मां और बच्चा दोनों को खतरा रहता है। डॉक्टर ऐसे मामलों में गर्भपात कराने की सलाह दे रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग की एचएमआईएस (हेल्थ मैनेजमेंट इंफारमेशन सिस्टम) रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में 127 महिलाओं की मौत भोपाल में हुई। इसमें सबसे ज्यादा 26 महिलाओं की मौत की वजह हाइपरटेंशन सामने आया है। इसके बाद दूसरी बड़ी वजह खून की कमी या प्रसव के दौरान अचानक ब्लीडिंग है। इस रिपोर्ट के बाद स्वास्थ्य विभाग ने कैंप लगाकर गर्भवती महिलाओं की जांच शुरू कर दी है। हाई रिस्क महिलाओं को डिलेवरी से पहले चिन्हित कर उनका बीपी कंट्रोल में रखा जा रहा है, जिससे प्रसव के दौरान दिक्कत न आए। रिपोर्ट के अनुसार पिछले सालों में प्रसूताओं की मौत की मुख्य वजह पोस्ट पार्टम हेमरेज (पीपीएच) था। इसमें प्रसव के बाद तेज ब्लीडिंग होने लगती है, लेकिन धीरे-धीरे इसका खतरा कम होता जा रहा है। संस्थागत प्रसव (अस्पतालों में) बढ़ने व अस्पतालों में सुविधाओं में इजाफा होने से पीपीएच के मामले कम हो रहे हैं। उधर, शारीरिक मेहनत नहीं होने, वसायुक्त भोजन व तनाव की वजह से लाइफ स्टाइल बीमारियां मसलन बीपी, शुगर, हार्ट डिसीज बढ़ रही हैं।
60 फीसदी महिलाएं दूसरे जिलों की
राजधानी मे माताओं की मौत ज्यादा होने की वजह यह है कि यहां दूसरे जिलों से महिलाओं को गंभीर हालत में रेफर किया जाता है। कुछ महिलाओं को सुल्तानिया अस्पताल में और कुछ को निजी अस्पतालों में भर्ती किया जाता है। 2015-16 में इनमें से 76 महिलाओं की मौत हो गई।
लाइफ स्टाइल आराम वाली हो गई है। जिससे कम उम्र में ही हाई बीपी की बीमारी होने लगी है। गर्भवती महिलाओं के बीपी के जकड़ में आने की बड़ी वजह देर से शादी है। जिन महिलाओं की प्रेगनेंसी 30 साल बाद हो रही है, उन्हें खतरा ज्यादा रहता है। पहले से बीपी की शिकार महिलाओं का बीपी गर्भावस्था में और बढ़ता है। इसका इलाज नहीं हो तो यह जानलेवा हो सकता है।
डॉ. सुधा चौरसिया, गायनकोलॉजिस्ट
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लाइफ स्टाइल बदलने की वजह से हार्ट, लिवर व ब्लड प्रेशर से होने वाली मौतें बढ़ रही हैं। उधर, अस्पतालों में प्रसव अब ज्यादा होने लगे हैं, इसलिए पीपीएच (ब्लीडिंग) से होने वाली मौतें कम हुई हैं। भोपाल में जिन महिलाओं की मौत होती है, उनमें करीब 65 फीसदी दूसरे जिलों की होती हैं।
डॉ. वीणा सिन्हा, सीएमएचओ भोपाल