भोपाल। मप्र की महिला आईएएस अफसर दीपाली रस्तोगी ने अपने एक लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'खुले में शौचमुक्त भारत अभियान' पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि गोरों के कहने पर उन्होंने इस विषय को अभियान बना दिया जबकि गोरे हमारे कहने पर कभी कुछ नहीं करते। आईएएस रस्तोगी ने एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। हालांकि एक सरकारी अफसर रहते हुए सरकारी योजनाओं पर सवाल उठाने का अधिकार उन्हे नहीं है, परंतु विषय तो है। उन्होंने यदि अपनी नौकरी खतरे में डालकर मुद्दा उठाया है तो बहस भी होनी चाहिए।
एक राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचार-पत्र में लिखे लेख में दीपाली रस्तोगी ने शौचमुक्त भारत अभियान को औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त बताया है। आईएएस दीपाली ने लिखा कि, गोरों के कहने पर पीएम मोदी ने खुले में शौचमुक्त अभियान चलाया, जिनकी वॉशरुम हैबिट भारतीयों से अलग है। उन्होंने लिखा कि अगर गोरे कहते हैं कि खुले में शौच करना गंदा है तो हम इतना बड़ा अभियान ले आए लेकिन हम मानते हैं कि टायलेट पर पानी की जगह पेपर का उपयोग करना गंदा होता है तो क्या वे कल से पानी लेकर टायलेट जाने लगेंगे?
अभिव्यक्ति की आजादी चाहिए तो नौकरी छोड़ दो
वर्तमान में आदिवासी विकास आयुक्त के पद पर कार्यरत दीपाली रस्तोगी के इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया में राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यसचिव रहे कृपाशंकर शर्मा ने सिविल सेवा आचरण नियमों का खुला उल्लंघन बताया। ईटीवी से बातचीत में से बातचीत में पूर्व मुख्यसचिव के.एस.शर्मा ने कहा कि सरकारी नीतियों और योजनाओं की आलोचना करने का अधिकार किसी भी सरकारी अधिकारी को नहीं है। शर्मा ने इस बात पर हैरानी जताई कि एक महिला अफसर खुले में शौचमुक्त अभियान की आलोचना कैसे कर सकती है। पूर्व मुख्यसचिव के.एस.शर्मा ने यहां तक कहा कि किसी सरकारी अफसर को इस तरह की अभिव्यक्ति करनी है, तो सरकारी नौकरी छोड़ देना चाहिए।