भोपाल। मप्र में छुआछूत और जाति के आधार पर भेदभाव पुरानी बात हो गई है। यहां सबके लिए समान अवसर उपलब्ध हैं। इस बात का प्रमाण है कि IIT-JEE में झाबुआ जैसे आदिवासी इलाके से 55 स्टूडेंट्स पास हुए हैं। यह एक बड़ी सफलता है। साथ ही समाज का नया चैहरा भी। जहां सब समान हैं। जहां ना जातिवाद है ना भेदभाव। जहां अब आरक्षण की जरूरत नहीं रही। इन विद्यार्थियों को मिरैकल 55 भी कहा जा रहा है। सिर्फ 43.3% की साक्षरता दर वाले आदिवासी क्षेत्र झाबुआ के ये छात्र उम्मीद से परे इस साल आईआईटी-जेईई मेन्स की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की है।
इनमें से बहुत सारे लोग छोटे गांव से आते हैं जो कई किमी की दूरी तय करके सरकारी स्कूलों में अध्ययन करने आते थे। ऐसे छात्रों के लिए प्रोफेशनल कोचिंग इंस्टीट्यूट ज्वाइन करना न सिर्फ एक सपना था बल्कि ये पूरी तरह से असंभव भी था। लेकिन एक युवा आईएएस ऑफीसर (झाबुआ जिला पंचायत सीईओ) अनुराग चौधरी को ये विद्यार्थी धन्यवाद देते हैं, जिनकी बदौलत आज इन विद्यार्थीियों के लिए असंभव जैसा कोई शब्द ही नहीं है। अनुराग चौधरी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि " सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि झाबुआ की निरक्षरता दर बहुत अधिक थी और ऐसे में यहां के मेधावी छात्रों के लिए भी गणित विषय लेना चुनौतीपूर्ण रहा।" इन्होंने स्कूल की छुट्टियों के बाद भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित विषय की कक्षाएं लीं। उनका ये योगदान एक चमत्कार की तरह काम किया।
इन छात्रों में एक मोहित कुत्सेना जिसने आईआईटी-जी की परीक्षा इस बार पास की है वो पैदल 12 किमी की यात्रा करके स्कूल आता था लेकिन उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे कहते हैं कि "क्योंकि बहुत से ऐसे लोग थे जिनको मुझपर विश्वास था। स्कूल के बाद खास कर केमिस्ट्री विषय की कोचिंग करना मेरे लिए बहुत लाभदायक रहा। अब मैं एक कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहता हूं। जिस तरह का सहयोग मुझे यहां मिला है यह मुझे मेरे सपने के पूरा होने का एहसास दिलाता है।"
अन्य विद्यार्थी झाबुआ के कल्यानपुर का रहने वाला रोहित भूरिया 3 किमी की पैदल यात्रा करके स्कूल आता था। ये बताते हैं कि "शिक्षकों का लगातार मार्गदर्शन मेरी सफलता के लिए मददगार रहा। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं सफलता हासिल करुंगा।"
एक अधिकारी ने कहा, "यह विशेष प्रशिक्षण दो साल से चल रहा है, इस मिशन के लिए खर्च विभिन्न सरकारी योजनाओं से मिले थे। चयनित छात्रों की संख्या पिछले साल 30 से बढ़कर इस साल 55 हो गई है।" जिन स्टूडेंट्स ने ये परीक्षा पास की हैं उन्हें अब आईआईटी-एडवांस क्लीयर करने के लिए तीन दिनों के अंदर इंदौर भेजा जाएगा। उनकी रहने, खाने और पढ़ने की खर्च सरकार वहन करेगी।
बताया जा रहा है कि दो साल पहले तक इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए 200 विद्यार्थियों ने गणित का चयन किया था, लेकिन अब 2,000 से अधिक छात्र उच्च शिक्षा के लिए इसका चयन कर रहे हैं।
हमने मेधावी छात्रों का चयन किया है और उन्हें प्रेरित करते हैं। उन्हें हर चुनौती का सामना करने के लिए खास तैयारी कराई जाती है। विद्यार्थियों को यह सिखाया जाता है कि पेपर में ज्यादा से ज्यादा नंबर कैसे स्कोर किये जा सकते हैं। अगले साल के लिए पास होने होने वाले विद्यार्थियों की संख्या का लक्ष्य हमने 150 रखा है। चौधरी ने बताया। हम वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के जरिए झाबुआ में कोचिंग क्लासेस करवाने की व्यवस्था कर रहे हैं। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमने बाहर से सेवामुक्त प्रोफेसर और विशेषज्ञ को अपना कीमती समय देने को कहा है।