सम्पत्ति कैसी भी हो उसका सौदा करते वक्त कई तरह की कागजी कार्रवाई और कानूनी दस्तावेजों का लेन-देन होता है। सम्पत्ति लेन-देन का ज्ञान रखने वाले वकील को सारी प्रक्रिया के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए। किसी भी सम्पत्ति के स्वामित्व तथा उससे जुड़ी सभी अन्य कानूनी बातों पर उन्हें करीब से गौर करना होता है। सम्पत्ति के लेन-देन में अगर किसी वकील की सेवा ले रहे हैं तो सुनिश्चित कर लें कि उसे ऐसे मामलों का अच्छा अनुभव हो। यह इसलिए भी जरूरी है कि हर राज्य में सम्पत्ति से जुड़े कानून व दिशा-निर्देश अलग-अलग होते हैं।
एग्रीमेंट
हर व्यक्ति को सम्पत्ति की खरीद से पहले होने वाले एग्रीमेंट यानी करार को ध्यान से पढऩा चाहिए। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इसमें जो दोनों ही पक्षों से संबंधित विभिन्न शर्तें तथा कानूनी दिशा-निर्देश दर्ज किए जाते हैं। एक बार एग्रीमेंट हो जाने के बाद दोनों पक्षों को इन्हें हर हाल में मानना पड़ता है। सम्पत्ति की खरीदारी की प्रक्रिया और मोलभाव के दौरान खरीदार को उसके तथा डवलपर के हितों की सभी शर्तों के बारे में पता होना चाहिए।
करार की मुख्य बातें :
सम्पत्ति के सौदे में तय की गई सभी महत्वपूर्ण बातों को एग्रीमेंट में लिखा जाता है। इन पर अवश्य ध्यान दें। जैसे कि ब्याज की दरें, समय पर निर्माण पूरा न होने पर बिल्डर की ओर से खरीदार को दिया जाने वाला हर्जाना, खरीदार पर लगने वाले विभिन्न शुल्क तथा रिफंड पेमैंट से जुड़ी शर्तों आदि पर गौर कर लें।
एग्रीमेंट में यह भी साफ-साफ लिखा होना चाहिए कि कब तक कब्जा दिया जाना है और उसमें देरी होने पर खरीदार को डिवैल्पर से कितना हर्जाना मिलेगा या उसे अपने पैसे ब्याज सहित वापस लेने का अधिकार हो।
आवश्यक स्वीकृतियां
किसी भी आवासीय परियोजना में घर खरीदने से पहले खरीदार को सुनिश्चित करना होगा कि डिवैल्पर ने निर्माण से जुड़ी सभी स्वीकृतियां प्रशासन से प्राप्त कर ली हैं ताकि बाद में निर्माण में किसी तरह की प्रशासनिक अड़चन पैदा न हो।
महत्वपूर्ण स्वीकृतियां
इमारत के संबंध में स्ट्रक्चरल सेफ्टी सर्टीफिकेट, नो ऑब्जेक्शन सर्टीफिकेट, एनवायरनमेंट क्लीयरैंस, बैंक अप्रूवल, अर्बन लैंड सीलिंग सर्टीफिकेट, कमेंसमेंट सर्टीफिकेट आदि डिवेल्पर के पास होने चाहिएं।
इनमें से किसी भी आवश्यक स्वीकृति के न होने पर निर्माण अधर में लटक सकता है या फिर उसका काम रुक भी सकता है।
आकस्मिक जरूरतों का ध्यान रखें
खरीदारों को सलाह दी जाती है कि वे किसी भी तरह की आकस्मिक जरूरत की स्थिति से उबरने के लिए एक ‘कंटिंजैंसी फंड’ के रूप में अलग से कुछ पैसे रखें। उन्हें इस तरह से कुछ रकम बचा कर रखनी होगी ताकि किसी भी संकटपूर्ण स्थिति या अचानक जरूरत के समय में उसका इस्तेमाल किया जा सके।
भविष्य में खर्चे बढऩे या किसी तरह के अतिरिक्त शुल्क लगने पर भी इसका प्रयोग किया जा सकता है और वे किसी प्रकार के वित्तीय संकट में पडऩे से बच जाएंगे।
अतिरिक्त शुल्क
खरीदारों को आकर्षित करने के लिए अधिकतर डिवैल्पर सम्पत्ति पर होने वाले कुल खर्च के बारे में नहीं बताते हैं। सम्पत्ति की खरीद के साथ कई अतिरिक्त शुल्क अदा करने पड़ सकते हैं जिन्हें खरीदार से छुपाया जा सकता है। सम्पत्ति पर स्वामित्व प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को उसका मूल्य तो चुकाना ही होगा अन्य कई खर्चे चुकाने की जिम्मेदारी भी उन पर ही होती है। ऐसे में आवश्यक है कि खरीदार इस तरह के हर खर्चे को पहले से ही ध्यान में रखे ताकि बाद में उसे किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े।
पेमेंट प्लान का चयन
अधिकतर बिल्डर अपनी आवासीय परियोजनाओं में खरीदारों को पेमेंट करने के लिए विभिन्न प्लान्स के विकल्प देते हैं। अपनी जरूरतों तथा क्षमता के अनुसार सही पेमेंट प्लान का चयन करना होगा। इसके लिए हर प्लान के लाभ और हानि के बारे में जान लें तो अच्छा होगा।
डाऊनपेमेंट प्लान :
इस प्लान में खरीदार मकान के कुल मूल्य का 10 से 15 प्रतिशत बुकिंग अमाऊंट के रूप में अदा करता है जबकि बाकी 80 से 90 प्रतिशत 45 से 60 दिनों के अंदर देना होता है और बची हुई थोड़ी-बहुत रकम कब्जा मिलने पर अदा की जाती है। यह प्लान खरीदारों के लिए सबसे किफायती साबित होता है क्योंकि इस तरह के प्लान में बिल्डर सबसे ज्यादा डिस्काऊंट देते हैं। हालांकि, इस प्लान के साथ जोखिम ज्यादा है क्योंकि खरीदार कब्जा मिलने से पहले ही लगभग सारी रकम अदा कर चुका होता है।
कंस्ट्रक्शन लिंक्ड प्लान :
पेमेंट के ऐसे प्लान में सम्पत्ति के कुल मूल्य का 10 प्रतिशत खरीदार बुकिंग के वक्त अदा करता है और बाकी की रकम निर्माण के विभिन्न चरणों के पूरा होने पर अदा करनी होती है। आमतौर पर यह प्लान डाऊनपेमेंट प्लान से थोड़ा ज्यादा महंगा होता है क्योंकि इसमें कुल मूल्य पर किसी प्रकार का डिस्काऊंट ऑफर नहीं होता है। साथ ही यदि बैंक लोन लिया जाता है तो ब्याज की दर थोड़ी ज्यादा होती है। हालांकि, इस प्लान में जोखिम कम है क्योंकि रकम निर्माण पूरा होने के साथ-साथ कई किस्तों में अदा की जाती है न कि एक ही बार में।
फ्लैक्सी पेमेंट प्लान :
इस प्लान में खरीदार बुकिंग के वक्त 30 से 40 प्रतिशत रकम अदा करता है और इतनी ही रकम निर्माण के एक तय चरण के पूरा होने पर अदा की जाती है और बाकी बची रकम को कब्जा मिलने पर अदा करना होता है। इस प्रकार से यह अन्य दो प्लान का मिला-जुला रूप है।