राकेश दुबे@प्रतिदिन। युवा शक्ति पर नाज़ करने वाले देश भारत में अब समीकरण बदल रहे हैं। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट ‘यूथ इन इंडिया’ के मुताबिक कुल जनसंख्या में यूथ का हिस्सा अगले कुछ वर्षों में कम हो जाएगा। रिपोर्ट में 15 से 34 वर्ष आयु वर्ग को युवा की श्रेणी में रखा गया है। जो वर्ष 2011 में इस आयुवर्ग का आबादी में हिस्सा 34.8 प्रतिशत था, जो अब 2021 में घटकर 33.5 प्रतिशत रह जाएगा। अनुमान है कि 2031 तक यह हिस्सा 31.8 प्रतिशत पर आ जाएगा।
'डेमोग्रैफिक डिविडेंड' वाली थीसिस के तहत एक अर्से से यह कहा जाता रहा है कि हमारी युवा आबादी हमारे लिए लाभांश की तरह है। लेकिन देश को इसका कितना लाभ मिल पाया है? युवाओं की शक्ति, उनकी क्षमता का लाभ तो तभी मिल सकता है जब हम उन्हें कुशल और सक्षम बनाएं, और कुछ करने का मौका भी उन्हें मिले। सरकारें युवा शक्ति का गुणगान तो खूब करती हैं, लेकिन बात उनके लिए कुछ करने की हो तो बगलें झांकने लगती हैं।
बेरोजगारी आज देश की युवा पीढ़ी के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। वर्ष 2001 की जनगणना में जहां 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वहीं 2011 की जनगणना में इनका हिस्सा बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया। 18-20 आयु वर्ग में ग्रैजुएट या उससे ज्यादा शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा 13.3 प्रतिशत है। छोटी-छोटी नौकरियों के लिए जिस तरह लाखों की संख्या में आवेदन आते हैं, उससे स्थिति की भयावहता का पता चलता है।
दो साल पहले यूपी के विधानसभा सचिवालय में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे। इनमें विज्ञान कला, वाणिज्य के ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट के अलावा इंजिनियर और एमबीए भी शामिल थे। 255 अभ्यर्थी बाकायदा पीएचडी थे। साफ है कि उच्च शिक्षा भी आज अच्छी नौकरी की गारंटी नहीं देती। हमारी अर्थव्यवस्था युवाओं के लिए अवसर नहीं पैदा कर पा रही है। कृषि क्षेत्र में रोजगार जैसा कुछ है नहीं, संगठित उद्योगों में रोजगार ज्यादा नहीं हैं फिर भी इसमें 4 प्रतिशत की बढ़त बताई जा रही है। सिर्फ भाषण देने से कुछ नहीं होगा। युवा शक्ति को मार्गदर्शन और रोजगार चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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