
सोशल मीडिया के फैलाव के साथ समाज में इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ी है। देश के किसी भी हिस्से में घटने वाली घटना को कुछ लोग सीधे खुद से जोड़ कर देखने लगते हैं। इस संबंध में उत्तेजक और भड़काऊ टिप्पणियां की जाती हैं और फिर घृणा के ये कैप्सूल डिजिटल दुनिया से निकलकर घरों, मोहल्लों और शहरों में फैल जाते हैं। जम्मू-कश्मीर को लेकर अभी इसी तरह का दुष्प्रचार चल रहा है। वहां फौजियों के साथ किसी भी दुर्व्यवहार का सच्चा-झूठा वीडियो पूरे देश के स्वाभिमान के साथ जुड़ जाता है।उग्र राष्ट्रवाद की वकालत करने वाले ऐसा माहौल बनाने में कुछ ज्यादा ही सक्रिय रहते हैं। पिछले कुछ समय से उन्होंने यह अभियान चला रखा है कि कश्मीर के तमाम नौजवान अलगाववादियों से निर्देश लेकर सेना पर पत्थर चलाते हैं। इस बात को कुछ इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे सभी कश्मीरी युवाओं ने मिलकर भारतीय राष्ट्र-राज्य के खिलाफ कोई अभियान छेड़ रखा हो। ऐसी अफवाहों के असर में आकर ही देश के कुछ हिस्सों में कश्मीरी छात्रों पर हमले हुए हैं।
इस सिलसिले का जारी रहना देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। अलगाववादी ठीक यही चाहते हैं। उनकी मंशा यह साबित करने की है कि कश्मीरियों के हित शेष भारत से अलग हैं और उनके लिए इस देश में कहीं कोई स्पेस नहीं है। अपनी इस कोशिश में वे आज तक नाकाम होते आए हैं। लेकिन जो काम अलगाववादी पिछले सत्तर सालों में नहीं कर पाए, वह देश के लोग ही कर देंगे- यह मानते हुए कि कश्मीरी छात्रों और फेरी वालों को अपनी नफरत का शिकार बनाकर वे देश की सेवा कर रहे हैं। जरूरत कश्मीर के नौजवानों में यह अहसास पैदा करने की है कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है, लिहाजा वे किसी के बहकावे में न आएं। यह तभी हो पाएगा, जब उन्हें कश्मीर से बाहर पूरे देश के लोगों का प्यार और सहयोग मिले।जो लोग राष्ट्रवाद के नाम पर कश्मीरियों पर हमले कर रहे हैं, वे वास्तव में राष्ट्र की जड़ खोद रहे हैं। देश की और जगहों से पढ़कर, अच्छा करियर बनाकर कश्मीर लौटने वाले नौजवान ही वहां भारत की अच्छाइयों के पैरोकार बनेंगे। उन्हें अपने से अलग बिल्कुल न समझें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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