भोपाल। सीबीआई विशेष अदालत ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) से फर्जीवाड़ा कर करोड़ो रुपए का लोन लेने वाले 8 आरोपियों को 3 साल कैद की सजा सुनाई है। सबूत के आभाव में एक आरोपी को बरी कर दिया गया। मामले का मुख्य आरोपी एलआईसी कर्मचारी एजे माहेश्वरी और उसका सहायक सुनील कुमार को अदालत ने फरार घोषित कर रखा है। यह फैसला गुरुवार को विशेष न्यायाधीश रविंद्रकुमार भद्रसेन ने सुनाया।
अभियोजन अनुसार घटना 11 अगस्त 1991 से 26 फरवरी 2003 के बीच बैरसिया रोड भोपाल स्थित एलआईसी दफ्तर में हुई थी। एलआईसी के तत्कालीन सीनीयर ब्रांच मैनेजर आईबी श्रीवास्तव ने 13 अक्टुबर 2003 को सीबीआई कार्यालय में लिखित शिकायत की थी। शिकायत में कहा गया था कि उनके कार्यालय सहायक एजे माहेश्वरी ने फर्जीदस्तावेजों के आधार पर उनकी संस्था से करीब 10 लोगों को लोन आवंटित कराया है जबकि जिनके नाम पर लोन आवंटित किए गए हैं वे व्यक्ति अस्तित्व में ही नहीं हैं। इस प्रकार एलआईसी को आरोपियों ने मिलकर 3 करोड़ 40 लाख 65 हजार 326 रुपए की आर्थिक हानि पहुॅंचाई है।
शिकायत के आधार पर सीबीआई ने मामले की जॉच शुरू कर दी जिसमें पाया कि एलआईसी कार्यालय सहायक एजे माहेश्वरी ने अन्य सह आरोपी ज्ञानेन्द्र पाठक , किशन कुमार गजभिये, बालकृष्ण गांधी, सुनील कुमार, सुनील गांधी, अभिषेक श्रीवास्व, चंबल नथानी, उदय नारायण वर्मा शिव शंकर प्रसाद व अन्य के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज बनाए थे। आरोपियों ने इन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैरसिया रोड स्थित एलआईसी कार्यालय में लोन प्रपोजल तैयार कर पेश किया था। ये सभी लोन प्रपोजल किसी अन्य व्यक्तियों जो कि अस्तित्व में ही नहीं थे उनके नाम थे।
इन दस्तावेजों के आधार पर आरोपियों ने अलग-अलग बैंकों में भी फर्जी खाते खोल रखे थे। अधिकांश बैंक खातों में आरोपी एजे माहेश्वरी ने खताधारक की पहचान की थी। सभी आरोपियों ने मिलकर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एलआईसी से लोन आवंटित कराकर चेक प्राप्त कर लिये और अपने फर्जी खातों में चेक को भुनाकर करोड़ों रुपए हड़प कर लिए। मामला सामने आते ही मामले का मास्टर माइंड एजे माहेश्वरी फरार हो गया जिसे अदालत ने 7 अक्टूबर 2007 को फरार घोषित कर दिया जबकि अन्य आरोपी सुनील कुमार मामले की सुनवाई के दौरान फरार हो गया जिसे 5 जनवरी 2013 को फरार घोषित कर दिया गया। शेष आरोपियों के खिलाफ अदालत में सुनवाई की गई जिनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, फर्जीवाड़ा और षडयंत्र के तहत अपराध प्रमाणित पाए जाने पर उक्त सजा का फैसला सुनाया गया।