उपदेश अवस्थी/भोपाल। एक बार फिर प्रमाणित हो गया कि मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ही कांग्रेस को सम्मानजनक स्थिति में लौटा सकते हैं लेकिन सिर्फ लौटा सकते हैं। जितना पक्का यह सच है कि सिंधिया के साथ भीड़ है उतना ही 24 कैरेट शुद्ध सच यह भी है कि उनके पास टीम नहीं है। टीम दिग्विजय सिंह के पास है। इनके अलावा मप्र के तीसरे दिग्गज कमलनाथ के पास क्या है अभी प्रमाणित होना शेष है।
मप्र में अब भी कायम है दिग्विजय सिंह का दम
भले ही 15 साल पहले दिग्विजय सिंह मप्र में बुरी तरह चुनाव हार गए हों। चाहे जनता दिग्विजय सिंह की वापसी के डर से भाजपा को वोट दे देती हो परंतु जहां तक कांग्रेस संगठन में मजबूती की बात है तो सबसे मजबूत टीम दिग्विजय सिंह के पास ही है। उनके पास जयजयकार लगाने वाले चापलूस हैं तो जमीन पर काम करके वोट बदलने वाले नेता भी। अपनी दम पर चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों की लिस्ट दिग्विजय सिंह के आॅफिस से ही मंगवाई जा सकती है। आधिकारिक रूप से मप्र कांग्रेस की राजनीति से दूर होने के बावजूद मप्र कांग्रेस की राजनीति का हर फैसला दिग्विजय सिंह की सहमति से ही होता है। अटेर में भी यदि दिग्विजय सिंह साथ ना निभाते तो ये 850 वोट सिंधिया के हाथ से निकल जाते।
सिर चढ़कर बोल रहा है सिंधिया का जादू
कुछ पुराने नेता भले ही सिंधिया को देश का गद्दार बताकर ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताकत को कम आंकने की गलती कर लें लेकिन सच यह है कि मप्र में शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले भीड़ जुटाने और उसे वोटों में बदलने की ताकत सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया में ही है। लोग सिंधिया से प्रभावित हो रहे हैं। उनमें भाषण देने की वो कला है जो आम आदमी को अपनी ओर खींच लाती है। भाजपा में शिवराज सिंह चौहान के अलावा कोई नेता नहीं है जो मप्र में स्टार प्रचारक की भूमिका अदा कर सके, लेकिन यह भी मानना ही होगा कि कांग्रेस में अकेले ज्योतिरादित्य सिंधिया ही हैं जो हजारों लाखों की भीड़ को एक साथ शिवराज सिंह के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं। लेकिन सिंधिया की सबसे बड़ी कमजोरी है उनकी अपनी टीम। उनके पास सिर्फ चरणवंदना करने वाले खाली खोखे ही ज्यादा हैं। जिस तरह की टीम सत्ता संचालन के लिए चाहिए वो दिग्विजय सिंह के पास है।
कमलनाथ की कहानी क्या है
मप्र में कांग्रेसी विधायकों का एक गुट चाहता है कि कमलनाथ को मप्र कांग्रेस की कमान सौंप दी जाए। भाजपा के कुछ दिग्गज नेता भी चाहते हैं कि कमलनाथ को ही यह मौका मिलना चाहिए लेकिन सवाल यह है कि कमलनाथ को यह अवसर क्यों ? जहां से कमलनाथ की कहानी शुरू होती है, वहां से आज तक कमलनाथ ने कभी कांग्रेस संगठन के लिए कुछ भी चमत्कारी नहीं किया है। वो लंबे समय तक मंत्री रहे। अफसरों पर लगाम लगाने में माहिर हैं। सत्ता को संचालित कैसे करें यह भी उन्हे बखूबी आता है। इतने लंबे राजनैतिक जीवन में उनसे संबंधित विवादों की गिनती एक दर्जन भी नहीं है लेकिन सत्ता की बात अलग होती है संगठन की अलग। संगठन केवल वही चला सकता है जिसे कार्यकर्ता अपना नेता मान लें। हाईकमान से हरी झंडी लेकर तो इससे पहले भी कई नेता आ चुके परंतु वो कांग्रेस में जान फूंकना तो दूर, पीसीसी में कचरा तक साफ नहीं कर पाए। कुछ तो ऐसे रहे जिनका आधा कार्यकाल बिना नई कार्यकारिणी के ही गुजर गया। कमलनाथ के पास ना तो संगठन चलाने का कोई खास अनुभव है और ना ही वो किसी प्रत्याशी के लिए चुनाव जिताऊ प्रचारक हो सकते हैं।