दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस भर्ती के एक मामले की सुनवाई करते हुए सोमवार को छह राज्यों के गृह सचिवों को भर्ती से संबंधित एक रोडमैप शुक्रवार तक कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्यों को निर्देश देते हुए कहा कि अगर किसी वजह से गृह सचिव कोर्ट में उपस्थित नहीं हो सकते तो उस दौरान संयुक्त गृह सचिव को यह रोडमैप पेश करना होगा।
कोर्ट के मुताबिक इन छह राज्यों में पुलिस की भर्ती सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि इन छह राज्यों से साल 2013 से पुलिसकर्मियों की भर्ती को लेकर कहा जा रहा है। लेकिन राज्यों की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कोर्ट की पिछली सुनवाई में सभी राज्यों के गृह सचिवों को नोटिस जारी करके चार हफ्तों में एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। गौरतलब है कि देशभर में इंस्पेक्टर की रैंक से लेकर कांस्टेबल की रैंक तक के करीब पांच लाख से ज्यादा पुलिस के पद खाली हैं। जिन पर लंबे समय से भर्ती नहीं हुई है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का
इस मामले पर पूर्व गृह सचिव आरके सिंह का कहना है कि पुलिस में खाली पड़े पदों को भरने की पहले से व्यवस्था कर लेनी चाहिए। प्रोएक्टिव रूप में काम करना चाहिए। सरकार और पुलिस विभाग के पास ये रिकॉर्ड होता है कि कौन व्यक्ति कब रिटायर हो रहा है तो उसी मुताबिक उन रिक्त पदों को भरने का प्रयास किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस कदम की सराहना करते हुए हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस निदेशक विक्रम सिंह ने पुलिस के खाली पड़े पदों के लिए सरकार और राजनैतिक दलों को ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि पुलिस बल की कमी एक बड़ा खतरा है, कानून व्यस्था को दुरुस्त रखने के लिए चुनौती है। ये विरोधाभास ही है कि एक तरफ लोग बेरोज़गार हैं और दूसरी तरफ इतनी बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं।
पुलिस बल की कमी के कारण पुलिसकर्मियों को तय समय से ज़्यादा काम करना पड़ रहा है और छुट्टी भी नहीं मिल पाती है। हर सरकार चुनाव से पहले खाली पड़े पदों को भरने की कोशिश करती है जिससे कि चुनाव में उसका फायदा लिया जा सके। पुलिस भर्ती को सतत प्रक्रिया बनाते हुए हर तीन महीने पर भर्ती की जानी चाहिए।