नई दिल्ली। क्लासरूम में तो हर जगह बच्चे स्कूली ड्रेस पहने दिखते हैं, लेकिन अब राजस्थान शिक्षकों के लिए भी ड्रेस कोड तय की जा रही है। प्रदेश के 4 लाख शिक्षकों के लिये पहली बार राजस्थान मे ड्रेस कोड लागू किया जाएगा। शिक्षा मंत्री का सुझाव है कि राजस्थान के पारंपरिक वेश-भूषा धोती-कुर्ते में शिक्षक नजर आएं। ड्रेस कोड क्या होगा और कितनी जल्द इसको पहनकर शिक्षक बच्चों को पढ़ाने आयेंगे, इस विषय पर अगले महीने जयपुर में शिक्षा विभाग के मुख्यालय शिक्षा संकुल मे मंथन होगा।
यानी साफ है कि 2018-19 मे राजस्थान के सरकारी स्कूलों के शिक्षक एक रंग मे आपको दिखेंगे. 5 अप्रैल को इस विषय पर चर्चा के लिए मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें ड्रेस तय करने के लिए कमेटी बनाई जाएगी. इस ड्रेस मंथन मे तमाम आला अधिकारी शिरकत करेंगे. सरकार की मंशा है कि ड्रेस में देखकर लोगों को पता चल जाए की गुरु जी हैं. इससे गुरु जी का सम्मान भी समाज में बढ़ेगा साथ ही अभिभावकों को भी स्कूल के शिक्षकों से मिलने-जुलने में आसानी होगी.
वैसे शिक्षा मंत्री का सुझाव है कि राजस्थान के पारंपरिक वेश-भूषा धोती-कुर्ते में गुरु जी नजर आएं लेकिन उनका कहना है कि ड्रेस कोड किसी पर थोपा नही जाएगा. इसके लिए एक्सपर्ट कमेटी बनेगी और वही ड्रेस का निर्धारण करेगी. महिला शिक्षकों के लिए सलवार शूट हो या साड़ी हो इस पर भी फैसला लिया जाएगा.
शिक्षा विभाग का कहना है कि ड्रेस कोड लागू होने के बाद शिक्षकों के अपने मन से कोई भी ड्रेस पहनने पर पाबंदी लगेगी. ड्रेस कोड लागू करने के पीछे शिक्षा विभाग का एक तर्क ये भी है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक भारतीय वेष-भूषा में दिखें. इससे स्कूलों में अनुशासन और स्कूल की गरिमा दोनों बढ़ेगी.
बच्चों की ड्रेस आरएसएस गणवेश जैसी
गौरतलब है कि राजस्थान के शिक्षा विभाग ने बीस साल बाद सरकारी स्कूलों में बच्चों की यूनीफॉर्म बदली है, इसमे छात्रों के लिये कत्थई रंग का हाफ पैंट और हल्के भूरे रंग का शर्ट यूनिफॉर्म मे शामिल किया है, जबकि छात्राओं के लिये सलवार, स्कर्ट और चुन्नी और शर्ट और कुर्ता हल्के भूरे रंग का तय किया गया है. शिक्षा विभाग के दफ्तर में सैंपल यूनिफॉर्म के सेट रखे जा रहे हैं.
राज्य के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी पर आरएसएस के ड्रेस से मिलती-जुलती ड्रेस बनवाने का आरोप लग रहा है. हालांकि सरकार ने ये भी फैसला किया है कि पहली से पांचवी तक के बच्चों के लिए स्कूल ड्रेस की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है ताकि नन्हे छात्रों और उनके अभिभावकों को बोझ न पड़े.