लखनऊ। 2010-11 में मायावती सरकार में राज्य चीनी निगम की 21 मिलों को बेचने में 1180 करोड़ रुपए के घोटाले की बंद हो चुकी फाइलें फिर से खुलेंगी। सीएम आदित्यनाथ योगी ने इस मामले की नई जांच के आदेश जारी किए हैं। इससे पहले अखिलेश यादव ने भी सपा सरकार स्थापित होते ही इसकी जांच करवाई थी। उस समय लोकायुक्त ने जांच में घोटाला तो पाया था परंतु इसमें किसी अधिकारी या मंत्री को दोषी नहीं पाया था। शायद इन फाइलों में कुछ ऐसा है जिनके खुलने के बाद मायावती चुप हो जातीं हैं। अखिलेश सरकार में भी चुप हो गईं थीं। इन दिनों ईवीएम पर बोल रहीं हैं लेकिन शायद अब चुप हो जाएंगी।
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जरूरत पड़ी तो इस घोटाले की सीबीआई से जांच कराने पर विचार किया जाएगा। साथ ही, उन्होंने को-ऑपरेटिव चीनी मिलों को 2018-19 में चालू कराने के लिए जरूरी व्यवस्थाएं समय से सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए हैं। बता दें कि शुक्रवार रात योगी ने गन्ना विकास और चीनी उद्योग विभाग के प्रेजेंटेशन देखने के बाद अफसरों से ये बात कही। योगी ने कहा, "किसी भी शख्स को सरकार की संपत्तियों को औने-पौने दामों पर बेचने का कोई अधिकार नहीं है। जनता की संपत्ति का दुरुपयोग कतई नहीं होने दिया जाएगा।
मायावती सरकार को तत्कालीन लोकायुक्त ने दी थी क्लीन चिट
बता दें, मायावती सरकार में हुए 1180 करोड़ रुपए के चीनी मिल बिक्री घोटाले की जांच पिछली अखिलेश यादव सरकार ने नवंबर 2012 में लोकायुक्त को सौंपी थी। तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने डेढ़ साल से ज्यादा समय तक जांच भी की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद जुलाई 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भेजी गई अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने चीनी मिलों की बिक्री में सरकार को लगी 1180 करोड़ रुपए की चपत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया था।
लोकायुक्त ने सरकार को इस मामले में विधानमंडल की सार्वजनिक उपक्रम और निगम संयुक्त समिति और सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन एसएलपी पर अपना पक्ष पेश करने की सिफारिश की थी। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।