शैलेन्द्र गुप्ता/भोपाल। यदि कोई कपल 1 साल से ज्यादा वक्त तक लिव-इन-रिलेशनशिप में रहता है और उनके बीच पति-पत्नी की तरह शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं तो इस अवधि के बाद महिला अपने पुरुष पार्टनर के खिलाफ रेप केस फाइल नहीं करा सकती, क्योंकि न्यायालय के आदेशानुसार 1 साल से ज्यादा लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले कपल को शादीशुदा का दर्जा प्राप्त हो जाता है। दंपत्ति को विवाहित मान लिया जाता है। तब युवती को वो सारे कानूनी अधिकार अपने आप प्राप्त हो जाते हैं जो एक विधिवत पत्नी को होते हैं।
पत्रकार अनूप दुबे की रिपोर्ट के अनुसार करीब एक साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले सुनाया था। उद्देश्य था लिव-इन-रिलेशनशिप के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाले शोषण को रोकना। माना जा रहा था कि इससे थानों में आए दिन दर्ज होने वाले रेप केस में कमी आएगी। लेकिन आदेश के एक साल बाद भी आदेश की कॉफी पुलिस थानों तक नहीं पहुंची। अब भी पुलिस ऐसे मामलो में ज्यादती का ही प्रकरण दर्ज कर रही है। भोपाल के महिला थाने में हर महीने करीब दर्जन भर लिव-इन-रिलेशनशिप की शिकायतें आती हैं। इनमें से 90 फीसदी में पुलिस को ज्यादती का प्रकरण दर्ज करना पड़ता है, जबकि 10 फीसदी में समझौता भी हो जाता है।
इस आधार पर मानें लिव इन रिलेशन
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी महिला और पुरुष के बीच संबंध की अवधि, घर और घरेलू जिम्मेदारियों के साझा करना। संसाधनों को मिलकर जुटाना। शारीरिक संबंध और बच्चे होना। समाज में आचरण को उनके लिव-इन-रिलेशन में होने या नहीं होने का आधार माना जा सकता है।
यह था निर्णय
अगर दो लोग लंबे समय से एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं और उनमें संबंध है, तो ऐसे में एक साथी की मौत के बाद दूसरे का उसकी संपत्ति पर पूरा हक होगा। लंबे समय तक साथ रहने पर यह मान लिया जाएगा की दंपति शादीशुदा ही है। इसका विरोध करने वाले को यह साबित करना होगा कि जोड़ा कानूनी रूप से विवाहित नहीं है।
यह पेंच भी है
शादीशुदा पुरुष और अविवाहित महिला के बीच लिव-इन-रिलेशनशिप की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि अगर कोई विवाहित पुरुष ऐसे रिश्ते से बाहर निकलता है, तो महिला घरेलू हिंसा एक्ट के तहत भरण पोषण नहीं मांग सकती। ऐसे में उस महिला पर ही केस हो सकता है। ऐसी किसी भी स्थिति में गरीब और अशिक्षित महिला को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसलिए शीर्ष अदालत ने संसद से समुचित कानून के जरिए इस सिलसिले में कोई उपाय करने का आग्रह किया था।
हमें कोई आदेश नहीं मिले हैं
हर महीने लिव-इन-रिलेशनशिप की दर्जनभर शिकायतें आती हैं। आरोपी के नहीं मानने पर पीड़िता की शिकायत पर ज्यादती के प्रकरण दर्ज किए जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस तरह के मामले में एक साल तक साथ रहने पर पति-पत्नी का दर्जा मिलने की बात सुनी है, लेकिन अब तक हमें कोई आदेश नहीं मिला है। इसलिए हम पुराने कानून के अनुसार ही कार्रवाई करते हैं।
शिखा बैस, टीआई महिला थाना