शैलेन्द्र गुप्ता/भोपाल। मप्र परिवहन विभाग में एक घोटाले की जानकारी सामने आ रही है। आरटीआई कार्यकर्ता विजय शर्मा ने दावा किया है कि विभाग ने स्मार्ट चिप लिमिटेड को मार्च 2014 से 9 सितम्बर 2014 के बीच 14 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान कर दिया। दरअसल, विभाग ने जिस अनुबंध के आधार पर यह भुगतान किया है वह पूर्व में ही समाप्त हो चुका था। सरकार ने 2007 में हुए अनुबंध दरों के आधार पर भुगतान कर दिया। जबकि सरकार को नए अनुबंध के आधार पर भुगतान करना था। इस तरह सरकारी खजाने को करीब 14 करोड़ की चपत लग गई। परिवहन आयुक्त शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने इस मामले को भ्रमपूर्ण बताया है।
मध्य प्रदेश परिवहन विभाग ने कम्पुटरीकरण हेतु प्राइवेट कंपनी स्मार्ट चिप लिमिटेड के साथ एक नया अनुबंध 2013 मैं किया है। जिसके अनुसार स्मार्ट चिप लिमिटेड को परिवहन विभाग के विभिन्न कार्यो (ड्राइविंग लाइसेंस के स्मार्ट कार्ड बनाना, वाहन पंजीयन के स्मार्ट कार्ड बनाना परमिट बनाना फिटनेस बनाना आदि) के बदले अनुबंध मैं तय की निर्धारित दरों के अनुसार भुगतान किया जाता है। भुगतान की निर्धारित दर सूची A अटेच की है।
इस अनुबंध की सूचना मध्य प्रदेश के राजपत्र मैं दिसंबर 2013 मैं अधिसूचना के माध्यम से भी दी गयी थी जो B और C के रूप मैं अटेच है।
परिवहन विभाग से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी कि स्मार्टचिप लिमिटेड को कितना भुगतान किया जा रहा है। तब प्राप्त जानकारी से ये मामला पता चला है की मार्च 2014 से 9 सितम्बर 2014 तक पूरे मध्य प्रदेश के आरटीओ कार्यालय मैं जो ड्राइविंग लाइसेंस के स्मार्ट कार्ड और वाहन पंजीयन के स्मार्ट कार्ड बनाये गए है उनका भुगतान सरकारी खजाने से स्मार्ट चिप कम्पनी को 2007 की दरो के हिसाब से किया है। मार्च 2014 से 9 सितम्बर 2014 तक पूरे मध्यप्रदेश मैं ड्राइविंग लाइसेंस के स्मार्ट कार्ड बने है ४७०१६८ और वाहनों के पंजीयन के स्मार्ट कार्ड बने है १०९०८२० | इन कार्डो का भुगतान स्मार्ट चिप कंपनी को परिवहन विभाग द्वारा ड्राइविंग लाइसेंस के लिए 53.46 रूपए प्रति कार्ड के हिसाब से किया है तथा वाहनों के पंजीयन के स्मार्ट कार्ड के लिए 106.92 रूपए के हिसाब से किया है। कुल भुगतान किया है 141994580 रूपए।
जबकि २०१३ मैं हुए अनुबंध के अनुसार इन कार्डो का भुगतान होना था| जिसमे निर्धारित दर ड्राइविंग लाइसेंस के स्मार्ट कार्ड के लिए 3.06 रूपए है और वाहनों के पंजीयन के स्मार्ट कार्ड के लिए 3.99 रूपए है। इस के अनुसार उक्त अवधि मैं बने कार्डो का भुगतान होता मात्र ५७९१०८५ रूपए। इस तरह परिवहन विभाग द्वारा उक्त प्राइवेट कंपनी को १३६२०३४९५ रूपए ज्यादा भुगतान किया है भुगतान के बिल भी अटेच है।
भुगतान नए अनुबंध के अनुसार ही हुआ है
परिवहन विभाग के कमिश्नर शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने भोपाल समाचार को बताया कि इस मामले में शिकायतकर्ता को कुछ भ्रम हो सकता है। कंपनी को जो भी भुगतान हुआ है, वह अनुबंध के आधार पर ही हुआ है। श्री श्रीवास्तव ने कहा था कि यह अनुबंध मेरे कार्यकाल से पूर्व का है। मेरे पास इस संदर्भ में अभी तक कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है। फिर भी मामला ध्यान में आया है तो एक बार और रिव्यू करवा लेता हूं। यदि कहीं कोई गलती हुई है तो उसे दुरुस्त कर लिया जाएगा। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि इस तरह के भुगतान एमपीईडीसी से आॅडिट और वेरिफाई कराने के बाद ही किए जाते हैं। परिवहन आयुक्त ने कहा कि हमारे विभाग का कुल बजट ही 48 करोड़ है। ऐसे में 14 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान संभव नहीं है। इस कंपनी को मेरी जानकारी के मुताबिक करीब 4 करोड़ रुपए का भुगतान होता है। फिर भी कोई शिकायत आती है तो हम गंभीरतापूर्वक उसकी जांच कराएंगे।