आज का इतिहास 9 मई - TODAY IN HISTORY

9 मई को विजय दिवस मनाया जाता है. यह दिन द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत की याद में मनाया जाता है. 
9 मई, 1689 को अंग्रेज़ शासक विलियम तृतीय ने फ़्रांस के साथ युद्ध की घोषणा की थी. 
9 मई, 1866 को महान नेता, समाज सुधारक, और विचारक गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म हुआ था. 
9 मई, 1946 को डॉ. राम मनोहर लोहिया की अगुआई में गोवा में पुर्तगाल के शासन के ख़िलाफ़ पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ था. 
9 मई, 1960 को अमेरिका के खाद्य और औषधि प्रशासन ने पहली गर्भनिरोधक गोली को मंज़ूरी दी थी. 
9 मई, 1975 को पहली विद्युत टंकण मशीन बनाई गई थी. 
9 मई, 1993 को दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर के नाम्बिजा क्षेत्र में भूस्खलन से 300 लोगों की मौत हो गई थी. 
9 मई, 2024 को विश्व मोस्कैटो दिवस मनाया जाएगा. 

हंस और काग

पुराने जमाने में एक शहर में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राम्हण की पत्नी ,उसे रोज़ ताने देती, झगड़ती। एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र, झगड़ों से तंग आ जंगल की ओर चल पड़ता है, ये सोच कर कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मार कर खा जायेगा, उस जीव का पेट भर जायेगा और मरने से वो रोज की झिक झिक से मुक्त हो जायेगा।

जंगल में जाते उसे एक गुफ़ा नज़र आती है। वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है। गुफ़ा में एक शेर सोया होता है और शेर की नींद में ख़लल न पड़े इसके लिये हंस का पहरा होता है। हंस ज़ब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है तो चिंता में पड़ सोचता है, ये ब्राह्मण आयेगा, शेर जगेगा और इसे मार कर खा जायेगा। ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा, इसे बचायें कैसे?

उसे उपाय सुझता है और वो शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है, ओ जंगल के राजा। उठो, जागो। आज आपके भाग खुले हैं, ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा दें रवाना करें, आपका मोक्ष हो जायेगा। ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा।

शेर दहाड़ कर उठता है, हंस की बात उसे सही लगती है, और पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने थे वे सब के सब उस ब्राह्मण के पैरों में रख, शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है।

हंस ब्राह्मण को इशारा करता है विप्रदेव ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ, ये सिंह है। कब मन बदल जाय।

ब्राह्मण बात समझता है घर लौट जाता है। पडौसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है। 

अब शेर का पहेरादार बदल जाता है। नया पहरेदार होता है "कौवा"
जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो सोचता है कि बढ़िया है, ब्राह्मण आया, शेर को जगाऊं, शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी, गुस्साएगा, ब्राह्मण को मारेगा, तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा। 

ये सोच वो कांव-कांव-कांव चिल्लाता है। शेर गुस्सा हो जगता है। दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है, उसे हंस की बात याद आ जाती है। वो समझ जाता है, कौवा क्यूं कांव-कांव कर रहा है। वो अपने, पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता,पर फिर भी नहीं शेर, शेर होता है जंगल का राजा। 

वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है। "हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान। थे तो विप्रा थांरे घरे जाओ, मैं किनाइनी जिजमान, अर्थात हंस जो अच्छी सोच वाले अच्छी मनोवृत्ति वाले थे उड़ के सरोवर यानि तालाब को चले गये है और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है। मेरी बुद्धि घूमे उससे पहले ही.. हे ब्राह्मण, यहां से चले जाओ। शेर किसी का जजमान नहीं हुआ है। वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया।

दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है। 

मोरल ऑफ़ द स्टोरी
ये कहानी आज के परिपेक्ष्य में भी सटीक बैठती है। हंस और कौवा कोई और नहीं, हमारे ही चरित्र है। कोई किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है, वो हंस है और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है, किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता, वो कौवा है।

जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के हैं। जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं वे कौवे की प्रवृति के है।

कार्यालय में, व्यवसाय में, समाज मे या किसी संगठन में हो जो किसी सहयोगी साथी की गलती या कमियों को बढ़ा चढ़ा के बताते हैं, उसको हानि पहुचाने के लिए उकसाते हैं... वे कौवे जैसे है.. और जो किसी सहयोगी, साथी की गलती, कमियों पर भी विशाल ह्रदय रख कर अनदेखी करते हुए क्षमा करने को कहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के है।
अपने आस पास छुपे बैठे कौवौं को पहचानों, उनसे दूर रहो और जो हंस प्रवृत्ति के हैं, उनका साथ करो। इसी में आपका व हम सब का कल्याण छुपा है!

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