राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस में यह सब यूँ ही नहीं हो रहा है। जिस बदलाव की मांग लम्बे समय से की जा रही थी उसकी प्रक्रिया शायद अब शुरू हुई है। यह बात और है कि एक झटके में सब कुछ बदल देने की बजाय कांग्रेस आलाकमान आहिस्ता-आहिस्ता संगठन में फेरबदल कर रहा है। पार्टी ने हाल के प्रदर्शन को देखते हुए कुछ बड़े नेताओं के पर कतरे हैं। जैसे महासचिव दिग्विजय सिंह से गोवा और कर्नाटक का प्रभार छीन लिया गया है। उनकी जगह केसी वेणुगोपाल को कर्नाटक का प्रभारी बनाया गया है जबकि चेला कुमार को गोवा का प्रभार दिया गया है। कर्नाटक के प्रभार के अलावा वेणुगोपाल को महासचिव का पद भी सौंपा गया है। मध्यप्रदेश से राज्य सभा सदस्य और ख्यातनाम वकील विवेक तन्खा को विधि शाखा का प्रमुख बनाया गया है।
गोवा में पार्टी की सरकार न बन पाने के पीछे दिग्विजय सिंह के सुस्त रवैये को जिम्मेदार ठहराया गया। वैसे भी पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने जुबानी जमाखर्च के सिवा और कुछ किया भी कहाँ है। इसी तरह मधुसूदन मिस्त्री को महासचिव के पद से हटाकर पार्टी संगठन में चुनाव कराने वाली समिति का हिस्सा बना दिया गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे पार्टी महासचिव अशोक गहलोत को जल्द ही चुनाव में जाने वाले गुजरात का प्रभार सौंपा गया है और चार नए सचिव बनाकर उनको एक टीम भी मुहैया कराई गई है। इसमें मध्यप्रदेश के जीतू पटवारी भी हैं।
दरअसल कांग्रेस में द्वतीय पंक्ति को मजबूत करने की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। पार्टी का ऊपरी ढांचा कमोबेश वही है जो नरसिंह राव के समय से चला आ रहा है। उसके कई नेता वृद्ध होकर अब लगभग निष्क्रिय हो गए हैं लेकिन आलाकमान एकाएक किसी को हटाकर उसे आहत नहीं करना चाहता। इसलिए नेताओं को पद से हटाने के बाद भी उन्हें कहीं और काम देने करने की नीति अपनाई जा रही है। आलाकमान के रवैये से लगता है कि वह युवाओं को आगे बढ़ाने की जगह सबको साथ लेकर चलना चाहता है। जल्द ही आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जाने वाले हैं।
सच तो यह है कि ये सब कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव की तैयारियों का हिस्सा है। कायदे से ये चुनाव पिछले साल ही संपन्न हो जाने चाहिए थे लेकिन पार्टी ने चुनाव आयोग से बार-बार आगे का समय मांगा। बहरहाल, अब तय हुआ है कि कांग्रेस ३१ दिसंबर तक अपनी चुनाव प्रकिया पूरी कर अपने पदाधिकारियों की लिस्ट चुनाव आयोग को भेज देगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि पार्टी अपनी पिछली गलतियों से कुछ सबक जरूर सीखेगी और जनता से संवाद रखने वाले जमीनी नेताओं को संगठन की जिम्मेदारियां सौंपेगी। टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर सुर्खियाँ बटोरने वाले नेताओं के दिन अब लद चुके है। देश की सबसे पुरानी पार्टी को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो अतीत के बोझ से मुक्त हों और नए जोश के साथ चुनौतियों का सामना कर सकें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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