
ये इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका और उसके बाद क्यूरेटिव डाल सकते हैं. राहत नहीं मिलने पर राष्ट्रपति के यहां अपील कर सकते हैं. किंतु उनके जघन्य अपराध को देखते हुए कहीं से उन्हें राहत मिलेगी, इसकी संभावना न के बराबर है. जिस ढंग से चलती बस में निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ, उसे मारने की भी कोशिश हुई; उसे याद करते ही सिहरन पैदा होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी है कि उस घटना को याद करने से ऐसा लगता नहीं कि यह इस ग्रह की घटना हो. यानी पृथ्वी पर जो मानव समुदाय है, उसके बीच से इस तरह के अपराध की कल्पना तक नहीं की जा सकती है. इसमें रहम की कोई गुंजाइश नहीं है. वास्तव में ऐसे मामले का फैसला बिल्कुल इस तरह होना चाहिए ताकि दूसरों के लिए यह भयनिवारक की भूमिका अदा करे. फिर कोई ऐसी बर्बरता करने की हिमाकत न करे इसलिए इस तरह की सजा देना बिल्कुल जरूरी था.
हालांकि, ऐसे मामले में, जिसमें पूरे देश में उबाल था, सजा में चार वर्ष चार महीने का समय लग गया. यह थोड़ा कचोटता है. इसमें पीड़िता के मृत्युपूर्व बयान से लेकर उसके दोस्त का आंखों देखा विवरण, घटना में प्रयुक्त बस, सब कुछ सामने था. इसलिए आम मान्यता है कि मामले में फैसला और जल्द आना चाहिए था. फैसले से संतुष्ट निर्भया के माता-पिता की यही मांग थी कि ऐसे मामले में त्वरित निबटान को एक नजीर बनाया जाना चाहिए था. कानून के लिहाज से यह जरूरी है.
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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