राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत की गिनती प्रेस की आज़ादी के मामले में कोई अच्छे स्थान पर नही है। 'द हूट' द्वारा भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता पर जारी रिपोर्ट में भारतीय प्रेस की आजादी के सिकुड़ते जाने का जिक्र किया गया है। पिछले 16 महीनों में पत्रकारों पर हमले की 54 घटनाएं सामने आ चुकी हैं और रिपोर्ट में इसकी वास्तविक संख्या के अधिक होने की भी आशंका जताई गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडिया स्वतंत्रता के मामले में एक खास तरह का पैटर्न देखने को मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार, 'खोजपरक रिपोर्टिंग लगातार खतरनाक होती जा रही है। किसी भी खबर की पड़ताल के लिए मैदान में निकलने वाले पत्रकारों को हमले का सामना करना पड़ता है। भले ही वह पत्रकार बालू माफिया, अवैध निर्माण, पुलिस बर्बरता, डॉक्टरों की लापरवाही, चुनाव अभियानों या प्रशासनिक भ्रष्टाचार की खोजपरक रिपोर्ट लेने क्यों न निकला हो।'
अगर पत्रकारों पर हुए हमले की घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो इसके लिए जिम्मेदार लोगों में कानून-निर्माताओं के अलावा कानून लागू करने वाले विभागों से जुड़े लोग भी शामिल हैं। पुलिस, किसी दंगे का आरोपी, शराब माफिया, राजनीतिक दल और उनके नेता एवं समर्थक इन हमलों में शामिल पाए गए हैं। इसके अलावा खबरों को सेंसर करने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। आउटलुक पत्रिका के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करना, साक्षी टीवी का प्रसारण रोकना या उद्योगपति एवं सांसद राजीव चंद्रशेखर का द वायर को अपमानजनक नोटिस भेजना ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं।
वैसे भारत को हाल ही में प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के मामले में 136वें स्थान पर रखा गया है। पेरिस स्थित गैरसरकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने दुनिया के 180 देशों का अध्ययन कर यह रिपोर्ट तैयार की है। इस सूची में भारत को नाइजीरिया, कोलंबिया और नेपाल जैसे देशों से भी नीचे रखा गया है जबकि जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के लिहाज से भारत इनसे काफी आगे है।
इसके विपरीत देश में समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की बिक्री 2006-16 की अवधि में 4.87 फीसदी की दर से बढ़ी है। इन 10 वर्षों में हिंदी के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की विकास दर 8.76 फीसदी रही है जबकि तेलुगू प्रकाशन 8.28 फीसदी की दर से बढ़े हैं। भुगतान से खरीदे जाने वाले समाचारपत्रों के प्रसार में वर्ष 2015 में 12 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि विकसित देशों में ऐसे समाचारपत्रों का प्रसार दो से लेकर छह फीसदी दर से ही बढ़ा है। इस तरह दुनिया में इंटरनेट के सर्वाधिक तेज प्रसार वाला देश होने के बावजूद पैसे देकर अखबार खरीदे जाने के मामले में भारत ने अन्य देशों को पीछे छोड़ दिया है। मीडिया संस्थान बढ़े, आज़ादी घटी और हमले बढ़े।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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