नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे तीन तलाक मामले की सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक प्रथा को जारी रखने के लिए उसमें संशोधन करने का प्रस्ताव पेश किया है। आज जमा किए गए नए हलफनामा में बोर्ड ने कहा है कि काजियों को इस संबंध में एडवायजरी जारी की जाएगी कि वह निकाह के वक्त दुल्हों को तीन तलाक का रास्ता नहीं अपनाने की सलाह दें। साथ ही कहा कि तीन तलाक शरीयत के तहत अवांछनीय परंपरा है. निकाहनामे में इसकी अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए। हलफनामे में इस बात का भी जिक्र है निकाहनामे में लड़की के कहने पर ये शर्त शामिल करवाने का ऑप्शन हो कि उसको तीन तलाक नहीं दिया जा सकता।
लोगों को जागरूक करने के लिए बोर्ड सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से तीन तलाक के बारे में बताया जाएगा। हलफनामे के सचिव मोहम्मद फजर्लुरहीम के अनुसार, निकाह कराते समय, निकाह कराने वाला व्यक्ति दूल्हे को सलाह देगा कि मतभेद के कारण तलाक की स्थिति उत्पन्न होने पर वह एक ही बार में तीन तलाक नहीं देगा, क्योंकि शरीयत में यह अवांछनीय परंपरा है।
तीन तलाक की परंपरा को अलग रखेगा पति
हलफनामे में कहा गया है कि निकाह कराते वक्त, निकाह कराने वाला व्यक्ति दूल्हा और दुल्हन दोनों को निकाहनामे में यह शर्त शामिल करने की सलाह देगा कि उसके पति द्वारा एक ही बार में तीन तलाक की परंपरा को अलग रखा जाएगा। मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफनामे का अवलोकन करेगी।
गर्मी की छुट्टियों के दौरान हुई सुनवाई
इस संविधान पीठ ने 18 मई को ही तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई पूरी की है. मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की परपंरा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य पक्षों की दलीलों को गर्मी की छुट्टियों के दौरान छह दिन सुना था।