सऊदी संकट : भारत सरकार हल सोचे

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सऊदी अरब में अजीब सा माहौल है। वहां सरकार की ओर से घोषित आम माफी योजना के तहत वहां से स्वदेश लौटने के इच्छुक भारतीयों की लाइन लगी हुई है। इस योजना के तहत इन भारतीयों को प्रस्ताव दिया गया है कि वे चाहें तो 90 दिनों के अंदर अपने देश वापस चले जाएं। उनके खिलाफ न तो किसी तरह की कार्रवाई होगी, न ही उन्हें किसी तरह का जुर्माना या शुल्क चुकाना होगा। बस फ्लाइट का किराया उन्हें अपनी जेब से देना होगा। अब तक हजारों भारतीय इस योजना के तहत स्वदेश वापसी की अर्जी दे चुके हैं।

स्मरण रहे कि सन 2014 से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में आई जबर्दस्त गिरावट ने सऊदी अरब जैसे तेल उत्पादक देशों को भारी मुश्किल में डाल दिया। अभी कीमतें कुछ सुधरी हैं, लेकिन उनकी अर्थव्यवस्था आज भी मुसीबत में है और कई सारी परियोजनाएं बंद हो गई हैं। ऐसे में वहां मजदूरी करने गए भारतीय जबर्दस्त मुश्किल में फंस गए। उनमें से ज्यादातर संदेहास्पद एजेंटों के धंध-फंद के बल पर सऊदी अरब पहुंचाए गए थे। जिन लोगों के पास अपना वैध-अवैध पासपोर्ट होता भी है, उन्हें यह अपने नियोक्ता को सौंप देना होता है। लिहाजा, परदेस में उनका होना, रहना, खाना-पीना सब कुछ नियोक्ता की मर्जी पर निर्भर करता है। ऐसे में जब नियोक्ता काम और वेतन देने की स्थिति में नहीं रह गए तो इन मजदूरों के लिए रहने और खाने के भी लाले पड़ गए।

राहत की बात है कि स्वदेश वापसी के रूप में उस अंधी गली से बाहर आने का इनके सामने एक रास्ता तो खुला। लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत नॉलेज पॉवर होने के साथ-साथ एक रेमिटेंस इकॉनमी भी है। रेमिटेंस, यानी दूसरे देशों में गए कामगार अपने परिवार के गुजारे के लिए जो थोड़ी-बहुत रकम अपने देश भेज पाते हैं, उससे होने वाली कमाई के मामले में भारत दुनिया का अव्वल राष्ट्र है। 2014 (70 अरब डॉलर) के मुकाबले 2015 में देश को कम (69 अरब डॉलर) रकम मिली थी, फिर भी इस मामले में यह पहले नंबर पर बना रहा। दूसरे नंबर पर रहे चीन की कमाई (64 अरब डॉलर) भी भारत से पांच अरब डॉलर कम दर्ज हुई। ऐसे में भारत सरकार को अपने प्रवासी कामगारों के हितों का इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए कि अनजानी जगहों पर इन्हें भिखमंगों की हालत में न भटकना पड़े।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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