दतिया। सामान्यत: अंतिम संस्कार श्मशान घाट, तालाब व नदी किनारे या सड़क किनारे किए जाते रहे हैं परंतु यहां एक युवक ने अपनी दादी का अंतिम संस्कार घर में ही किया, क्योंकि उसकी दादी नहीं चाहती थीं कि वो उससे कभी दूर जाए। दादी की इच्छा का सम्मान करते हुए घर के आंगन में उनका अंतिम संस्कार करके समाधि बनाई गई।
दतिया के इंदरगढ़ के रामजी जाटव का अपनी दादी रतीबाई (100) का खास लगाव था। अक्सर रामजी से उसकी दादी कहती रहती थी कि राम तू मुझे अपने से कभी दूर मत करना। चूंकि पिता के निधन के बाद रामजी का पालन-पोषण उसकी दादी रतीबाई ने ही किया था, इसलिए उसका भी दादी के प्रति विशेष स्नेह था। अपनी दादी की देखरेख के चक्कर में रामजी सिर्फ मजदूरी के लिए ही घर से बाहर जाता था। उसने नाते-रिश्तेदारी में होने वाले शादी-ब्याह व अन्य कार्यक्रमों में जाना तक छोड़ दिया।
अंतिम क्रिया-कर्म घर के बाहर ही की
मंगलवार की रात रतीबाई का निधन हो गया। दादी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए रामजी ने उनका अंतिम संस्कार मुक्तिधाम में करने के बजाय घर के अंदर मौजूद खुली आंगन में कर दिया। बकौल रामजी-अंतिम समय में भी दादी कहा करती थी-बेटा तुम मेरी नजरों से दूर मत होना और उम्र के इस पड़ाव में मुझे अपने घर से दूर कहीं मत ले जाना। रामजी जाटव अपनी दादी से मिले स्नेह को भुला नहीं पाया। इसलिए दादी अंतिम समय में मेरी नजरों के सामने रहे, इसलिए मैने उनका अंतिम क्रिया-कर्म अपनी पाटौर के बाहर ही कर दिया।