मुंबई। शुक्रवार 19 मई को रिलीज़ हो रही फ़िल्म हिंदी मीडियम पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है। साकेत चौधरी निर्देशित ‘हिंदी मीडियम’ एक अनिवार्य फिल्म है। हिंदी और अंग्रेजी के बढ़ रहे भेद भाव को भी फ़िल्म में बखूबी दिखाया गया है।मध्यवर्ग की विसंगतियों को छूती इस फिल्म के विषय से सभी वाकिफ हैं लेकिन कोई इस पर बातें नहीं करता। सभी बड़े समीक्षकों ने फ़िल्म को अच्छे स्टार्स दिए हैं। बहरहाल, फ़िल्म देखने से पहले हम आपको बता रहे हैं कि फ़िल्म 'हिंदी मीडियम' आखिर क्यों देखी जाए आजादी के बाद भी देश की भाषा समस्या समाप्त नहीं हुई है। दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा का साक्षात उदाहरण है भारतीय समाज में अंग्रेजी का बढ़ता वर्चस्व। अंग्रेजी की हिमायत करने वालों के पास अनेक बेबुनियादी तर्क हैं। हिंदी के खिलाफ अन्य भाषाओं की असुरक्षा अंग्रेजी का मारक अस्त्र है। अंग्रेजी चलती रहे। हिंदी लागू न हो। अब तो उत्तर भारत के हिंदी प्रदेशों में भी अंग्रेजी फन काढ़े खड़ी है। दुकानों के साइन बोर्ड और गलियों के नाम अंग्रेजी में होने लगे हैं।
इंग्लिश पब्लिक स्कूलों के अहाते बड़ होते जा रहे हैं और हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल सिमटते जा रहे हैं। हर कोई अपने बच्चे को इंग्लिश मीडियम में डालना चाहता है। सरकार और समाज के पास स्पष्ट और कारगर शिक्षा व भाषा नीति नहीं है। खुद हिंदी फिल्मों का सारा कार्य व्यापार मुख्य रूप से अंग्रेजी में होने लगा है। हिंदी तो मजबूरी है देश के दर्शकों के बीच पहुचने के लिए...वश चले तो अंग्रेजीदां फिल्मकार फिल्मों के संवाद अंग्रेजी में ही बोले। कहते हैं आज कॉम्पटीशन का युग है और इस युग में आपको मुकाबला करना है तो अंग्रेजी ही आपका हथियार है। ज़ाहिर है, अंग्रेजी का जलवा दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में सिर्फ स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनके पेरेंट्स भी यही चाहते हैं कि उनका बच्चा अंग्रेजी मीडियम में पढ़े। कई बार पेरेंट्स खुद हिंदी मीडियम से या फिर बेपढ़े-लिखे भी होते हैं। ऐसे पेरेंट्स को इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चों को दाखिला कराने के लिए किस तरह की चुनातियों का सामना करना पड़ता है, अगर आप इस बात को समझना चाहते हैं तो यह फ़िल्म आपको ज़रूर देखनी चाहिए!
कहानी, स्क्रीनप्ले, संवाद, एक्टिंग हर स्तर पर यह फ़िल्म आपको बांधे हुए रखती है। ज़्यादातर दर्शक इस फ़िल्म से एक कनेक्शन महसूस करेंगे! यह फ़िल्म न सिर्फ आपको हंसाती है बल्कि कई बार रुला भी देती है। दीपक डोबरियाल जैसे आर्टिस्ट आपको भीतर तक छूने का दम-खम रखते हैं। इरफ़ान ख़ान की अपनी एक ज़बरदस्त फैन फॉलोविंग है। एक टीवी विज्ञापन के हल्के-फुल्के स्क्रिप्ट में भी इरफ़ान जिस तरह से जान डाल देते हैं वो काबिलेतारीफ है। तो अगर आप इरफ़ान के फैन हैं तो आपको यह फ़िल्म मिस नहीं करनी चाहिए। अंग्रेजी भाषा नहीं बल्कि एक क्लास बन गयी है और इस क्लास में घुसने की तड़प को बखूबी बयान करती है यह फ़िल्म। फ़िल्म में इरफ़ान ख़ान, सबा क़मर, दीपक डोबरियाल, अमृता सिंह आदि एक्टर्स ने बेहतरीन काम किया है।