
बता दें कि मोहन प्रकाश को मध्यप्रदेश में 4 साल हो गए हैं। इस दौरान मध्यप्रदेश में कई उपचुनाव हुए परंतु मोहन प्रकाश यहां कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाए। यहां तक कि कुछ उपचुनावों में तो प्रत्याशियों को मतदान के 7 दिन पहले तक चुनाव प्रचार का पैसा तक नहीं दिला पाए। ज्यादातर विवादित मामलों को फैसले तक पहुंचाने के बजाए वो उन्हे टालते रहे।
मोहन प्रकाश जिला-ब्लॉक कमेटियों की सदस्यता, विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर आयोजित बैठक में शामिल होने भोपाल आए थे। यहां पत्रकारों ने उनसे जुड़े कुछ सवाल पूछ लिए। इसके बाद वे पूरे समय असामान्य ही दिखाई दिए। शायद मोहन प्रकाश को उम्मीद नहीं थी कि उनसे कुछ ऐसे भी सवाल हो जाएंगे। शायद यह उनका दर्द है कि वो मध्यप्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाए। इधर कांग्रेसी नेताओं का दर्द यह है कि मोहन प्रकाश किसी भी मामले में हाईकमान से फैसले ही नहीं करवा पाते। मध्यप्रदेश कांग्रेस में सबकुछ पेंडिंग चल रहा है।