
9000 करोड़ मिलना था 3500 करोड़ मिले
मंत्रालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष (2016-17) में प्रदेश को 8973.63 करोड़ रुपए का अनुदान मिलना था। जबकि इसके एवज में प्रदेश को मात्र 3430. 37 करोड़ रुपए मिले। यानी अधिकारियों द्वारा समय पर यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं देने के कारण 60 प्रतिशत (5543. 26 करोड़) राशि नहीं मिल सकी है। सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि उसकी प्राथमिकता वाली योजनाओं जैसे जलापूर्ति, शिक्षा, स्वास्थ, पोषण आहार, मिड डे मील, सिंचाई, प्राकृतिक आपदाओं संबंधित योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही के कारण यह राशि समय पर नहीं मिल सकी।
इसकी गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री ने एक उच्च स्तरीय बैठक भी बुलाई थी। जिसमें कई अधिकारियों ने दावा किया था कि उनके विभाग को केंद्र से समस्त अनुदान मिल गया है, लेकिन जब मुख्यमंत्री ने उपयोगिता प्रमाण-पत्र समय में नहीं दिए जाने का सवाल किया तो अधिकारी एक-दूसरे को देखने लगे। सामाजिक उत्थान से जुड़ी राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम जैसी योजनाओं के अलावा प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना में भी बजट अनुमान से कम राशि प्रदेश को मिली है।
उपयोगिता प्रमाण-पत्र जल्द भेजने को कहा है
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश आवासीय आयुक्त आशीष श्रीवास्तव ने भी इस संबंध में राज्य सरकार को एक पत्र लिखा था। जिसमें साफ तौर पर कहा है कि उपयोगिता प्रमाण-पत्र समय पर जारी नहीं होने के कारण राशि नहीं मिल पा रही है लेकिन यह प्रदेश सरकार के प्रवक्ता के उस दावे के विपरीत है, जिसमे जोर देकर कहा गया है कि प्रदेश को पिछले वर्ष से अधिक अनुदान केंद्र सरकार से मिला है। आवासीय आयुक्त ने ग्रामीण विकास, सामाजिक न्याय एवं निशक्तजन, नगरीय विकास और पर्यावरण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति और कृषि विभाग को केंद्र सरकार को नए प्रस्ताव और उपयोगिता प्रमाण-पत्र जल्द भेजने को कहा है।
फैक्ट फाइल
पिछले साल ग्रामीण सड़क योजना के 2027 करोड़ की राशि खर्च नहीं हो सके।
राज्य को केंद्र से प्रधानमंत्री आवास योजना के 1250 करोड़ की किश्त मिलना शेष है।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम की 1157 करोड़ केंद्र में अटके हैं।
जल संसाधन एवं नर्मदा घाटी विकास विभाग को 1052 करोड़ के विरुद्ध मात्र 92 करोड़ ही मिल सके।